‘दो टिकट बछरावां के लिए’ –मैंने सौ का नोट देते हुए बस कंडक्टर से कहा I
‘टूटे दीजिये, मेरे पास चेंज नहीं है I’
‘कितने दूं ?’
‘बीस रुपये ‘
मैंने उसे बीस रूपए दे दिये और पर्स सँभालने में व्यस्त हो गया I वह रुपये लेकर आगे बढ़ गया I
-'क्या कंडक्टर ने टिकट दिया ?'- सहसा मैंने पत्नी से पूछा i
‘नहीं तो ‘ उसने चौंक कर कहा I तभी बगल की सीट पर बैठा एक अधेड़ बोल उठा –‘टिकट भूल जाइये साहेब , बछरावां के दो टिकट तीस रुपये के हुए उसने आपसे बीस ही तो लिए i दस का फायदा आपका और बीस का उसका I गौरमेंट की ऐसी-तैसी I’
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
विजय सर !
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभार i
रोज ही दो चार होते हैं लोग ऐसे वाकयों से लेकिन मूल बात वही " सरकार की ऐसी की तैसी "| सुन्दर लघुकथा , बधाई..
भ्रष्टाचार के कई रूप होते है उसके एक रूप की झलक इस लघु कथा में देखने को मिलती है . इस सफल लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें. आ. डॉ. गोपाल नारायन जी
आदरणीय गोपालनारायण सर ,बहुत जीवंत व्यंग्य है |सिस्टम में अनजाने ही हम सब ढल चुके है |कटु सत्य |हार्दिक बधाई |सादर अभिनन्दन |
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण सर ,तीर सीधे निशाने पर मारा है . “गौरमेंट की ऐसी-तैसी” सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई ! सादर .
बहुत सुंदर जीवंत उदाहरण ,,,इस अच्छी लघुकथा पर आपको सादर बधाई आ. गोपाल नारायण जी |
सहभागिता आधारित भ्रष्टाचार पर सटीक व्यंग्य
सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर.
इसे ही कहते है करप्शन विथ कापरेशन
सुन्दर कथा.
सादर.
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