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ग़ज़ल : अमीरी बेवफ़ा मौका मिले तो छोड़ जाती है

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

अमीरी बेवफ़ा मौका मिले तो छोड़ जाती है

गरीबी ही सदा हमको कलेजे से लगाती है

 

भरा हो पेट जिसका ठूँस कर उसको खिलाती पर

जो भूखा हो अमीरी भी उसे भूखा सुलाती है

 

अमीरी का दिवाला भर निकलता है सदा लेकिन

गरीबी कर्ज़ से लड़ने में जान अपनी गँवाती है

 

अमीरी छू के इंसाँ को बना देती है पत्थर सा

गरीबी पत्थरों को गढ़ उन्हें रब सा बनाती है

 

ये दोनों एक माँ की बेटियाँ हैं इसलिए ‘सज्जन’

गरीबी ख़ून देकर भी अमीरी को बचाती है

----

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 4, 2015 at 12:22pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, बहुत उम्दा गजल कही है आपने. दिली बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 4, 2015 at 7:55am
आदरणीय बड़े भाई धमेन्द्र जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है।
Comment by मनोज अहसास on May 3, 2015 at 9:25pm
बहुत सुन्दर
Comment by Samar kabeer on May 3, 2015 at 10:22am
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही है अपने,सभी अशआर अमीरी और ग़रीबी के गिर्द घूम रहे हैं,ग़ज़ल में किसी दूसरे मोज़ूअ को जगह नहीं मिल पाई, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by seema agrawal on May 3, 2015 at 12:38am

अमीरी छू के इंसाँ को बना देती है पत्थर सा

गरीबी पत्थरों को गढ़ उन्हें रब सा बनाती है

 

ये दोनों एक माँ की बेटियाँ हैं इसलिए ‘सज्जन’

गरीबी ख़ून देकर भी अमीरी को बचाती है

पूरी  ही  ग़ज़ल  के  शेर  तराशे  हुए  हैं  पर  इन दोनों अश'आर  में  कुछ  अलग  ही  बात  है  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 2, 2015 at 9:54pm

ये दोनों एक माँ की बेटियाँ हैं इसलिए ‘सज्जन’

गरीबी ख़ून देकर भी अमीरी को बचाती है

क्या बात है , आदरणीय धर्मेन्द्र सज्जन भाई , अमीरी का खूब चरित्र चित्रण हुआ है , लाजवाब  गज़ल के लिये बधाई आपको ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 8:29pm
बहुत अच्छी ग़ज़ल , अमीरी एक स्वप्न , गरीबी एक सच्चाई, हम लोगों के परिवेश में तो यही है ,
बधाई आपको आदरणीय धर्मेन्द्र जी , सादर।
Comment by MAHIMA SHREE on May 2, 2015 at 8:14pm

ये दोनों एक माँ की बेटियाँ हैं इसलिए ‘सज्जन’

गरीबी ख़ून देकर भी अमीरी को बचाती है.....वाह...अमीरी और गरीबी को खूब परिभाषित किया आपने इस ग़ज़ल में...बहुत बहुत बधाई आपको

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