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प्यासी देह .....

मन की कंदराओं में किसने .......
अभिलाषाओं को स्वर दे डाले .......
किसकी सुधि ने रक्ताभ अधरों को ......
प्रणय कंपन के सुर दे डाले//

मधुर पलों का मुख मंडल पर ........
मधुर स्पंदन होने लगा .........
मधुर पलों के सुधीपाश में ........
मन चन्दन वन होने लगा//

नयन घटों के जल पर किसकी .......
स्मृति से हलचल होने लगी ........
भाव समर्पण का लेकर काया .......
मधु क्षणों में खोने लगी//

किसको छूकर हृदय द्वार पर .......
पवन ने दस्तक दे डाली ......
नृत्य भाव में मग्न हो गयी ......
प्यासी देह की हर डाली//

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित



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Comment by Hari Prakash Dubey on May 15, 2015 at 9:27pm

किसको छूकर हृदय द्वार पर,
पवन ने दस्तक दे डाली,
नृत्य भाव में मग्न हो गयी,
प्यासी देह की हर डाली !!.....बहुत खूबसूरत रचना , हार्दिक  बधाई  आदरणीय सुशील सरना सर  ! सादर  

Comment by narendrasinh chauhan on May 15, 2015 at 6:21pm

बहुत सुंदर भावभरी रचना

Comment by Shyam Narain Verma on May 15, 2015 at 2:55pm
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति , बधाई आप को | सादर 
Comment by Ayub Khan "BismiL" on May 15, 2015 at 2:17pm

bahut khooob Sushil sahab 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 15, 2015 at 11:37am

अति सुंदर. रचना में शब्दों के साथ, बहुत सुंदर भाव उभर कर आयें है आदरणीय शुशील जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by aman kumar on May 15, 2015 at 11:37am

देह के साथ प्यास जुड़ी रहती ही है , पर वो नश्वर है ...

सुंदर भाव आभार !

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