भूख और थकावट से चूर दोनों असहाय भाई-बहन एक-दूसरे से लिपट कर लेट गये.
आज सुबह के भूकम्प में अपने मां-पापा को खो देने के बाद से ये छः वर्षीय भाई ही तो उसका सम्बल था.
दो वर्ष छोटी बहन को ऐसा लग रहा था जैसे अपने भाई के सीने पर सर रख देने से ही उसकी सारी समस्याओं का निदान हो गया हो.
अचानक खयाल आया, उसके भाई के लिये आखिर सम्बल कौन है ?
उसके नन्हे हाथ अनायास भाई के गालों पर फैल गये आँसुओं को साफ़ कर उसके धूल भरे बालों को सहलाने लगे.
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय केवल प्रसाद जी,
प्रोत्साहन के लिये आभार.
सादर.
आदरणीय गोपाल नारायण जी,
कथा पर विचार देने के लिये आभार.
सादर.
आदरणीय मिथिलेश जी,
प्रस्तुत चित्र ने ही कथा लिखने की प्रेरणा दी थी. प्रोत्साहन देने के लिये घन्यवाद.
सादर.
आदरणीया प्राची जी,
बाल मनोवोज्ञान को समझते हुये सुन्दर विचार दिया है आपने.
पाठक जब कथा के साथ विश्लेषण करता है तो उसके सफ़ल होने का भान होता है.
प्रोत्साहन के लिये आभार.
सादर.
आ0 शुभ्रांशु भाई जी. दिव्य दृष्टि व गहन भावों की अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें, सादर
आदरणीय शुभ्रांशु जी
बहुत संवदन शील तंतु को पकड़ा आपने . आपको बधाई .
छंदोत्सव में प्रदत्त चित्र को लघुकथा में खूब पिरोया है
बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर
मुश्किल वक्त अचानक बाल मन को कितना परिपक्व बना देता है..... आपदा का मासूम मन पर क्या असर पड़ा होगा, कैसे दो नन्हे
बालक एक दूसरे का संबल बने होंगे, इसकी बहुत ही संवेदनशील प्रस्तुति.
चलचित्र सा पटल पर दौड़ गया हर शब्द के साथ.
बहुत ही सधी और खूबसूरत अभिव्यक्ति आ० शुभ्रांशु जी
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