२१२२ १२१२ २२
साफ़ कहने में है सफ़ाई क्या ?
कौन समझे पहाड़-राई क्या ?
चाँद-सूरज कभी हुए हमदम ?
ये तिज़ारत है, ’भाई-भाई’ क्या ?
सब यहाँ जी रहे हैं मतलब से
मैं भी जीयूँ तो बेवफ़ाई क्या ?
चाँद है वो, मगर सितारों की
उसने फिर से सभा बुलाई क्या ?
क्या अदब ? लाभ पढ़, मुनाफ़ा लिख
गीत कविता ग़ज़ल रुबाई क्या ?
मुट्ठियों की पकड़ बताती है
चाहती है भला कलाई क्या !
खुदकुशी के हुनर में माहिर हूँ
कामना क्या, मुझे बधाई क्या ?
लग गया खूँ अगर किसी मूँ को,
फिर तो मालूम है, दवाई क्या !
***************
-सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
भाई मनोज कुमार अहसास जी,
//क्या ख़ुदकुशी हुनर हो सकती है//
किसी पद्य-रचना में शब्दों को तीन तरह से प्रयुक्त किया जाता है. अभिधा मूलक शब्द संयोजन, अभिव्यंजना मूलक शब्द-संयोजन और लक्षणा मूलक शब्द संयोजन.
अभिधा मूलक का अर्थ है कि शब्द अपने शब्दार्थ को ही परावर्तित करते हैं. ऐसे प्रयोग पद्य में बहुत सही नहीं माने जाते. क्योंकि कविता या पद्य-रचनाएँ इंगितों या इशारों के माध्यम से लक्ष्य को भेदने की कला का नाम है. पद्य-रचनाओं में अभिव्यंजना मूलक शब्दों की ही आवश्यकता हुआ करती है.
ये तो फिर ग़ज़ल है जिसका हर तरह से कलेवर अत्यंत कमनीय होता है.
इस शेर के बाबत कहूँ तो, जिसका हुनर खुदकुशी ही हो, यानी आत्महंता की प्रवृति हो उसके किस काम की चर्चा हो. यानी, स्वयं पर आत्ममुग्ध व्यक्तियों पर यह व्यंग्य है, यह शेर.
विश्वास है, मैं संतुष्ट कर पाया.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय समर साहब, आपसे मिला मुखर अनुमोदन मेरे लिए पुरस्कार है.
’जीलूँ’ निस्संदेह एक सार्थक ऑप्शन है सर.
लेकिन ’जीयूँ’ और ’जीलूँ’ के बारीक अन्तर को समझना भी उचित होगा. ’जीयूँ’ में इसी लिहाज में ’जीते आ रहे’ का भान है जबकि ’जीलूँ’ कहने में ’इस’ तरह यानी मतलबी तौर पर ’अब से’ जीने का भान हो रहा है. यानी पहले से ऐसे जीते नहीं आ रहे थे. मेरे शेर में ’जीयूँ’ का आशय ’मतलब या स्वार्थ में खुद को जीते जाने को’ उचित ठहराना है.
इस आयाम से इस शेर को देख कर मुझसे कहिये क्या ’जीलूँ’ कहना उचित होगा. जिज्ञासा बनी है.
शुभ-शुभ
आदरणीय सुशील सरनाजी, आपसे मिला खुला अनुमोदन मेरे लिए सम्मान है.
सादर
आदरणीय नरेन्द्र जी, ग़ज़ल को मान देने केलिए हार्दिक धन्यवाद
साफ़ कहने में है बुराई क्या ?
कौन समझे पहाड़-राई क्या ?
चाँद-सूरज कभी हुए हमदम ?
ये तिज़ारत है, ’भाई-भाई’ क्या ?
आदरणीय सौरभ सर बहुत खूब लिखा है आपने एक से बढ़ कर एक शेर कहे दिल खुश हो गया
सब यहाँ जी रहे हैं मतलब से
मैं भी जीयूँ तो बेवफ़ाई क्या ? .... अच्छा तंज़ है ......
बहुत खूब... सर जी ...
आ0 सौरभ जी, सभी अशआर कमाल की बात कह गए - दाद कबूल करें
आ0 सौरभ सर जी, बहुत प्यारी गज़ल के लिये ढेरो दाद कुबूल करे. सादर
आ० सौरभ जी
बेहतरीन गजल हुयी है . एक से बढ़कर एक शेर . नवीन कल्पना और उद्भावना के साथ ---
लग गया खूँ अगर किसी मूँ को,
फिर तो मालूम है, दवाई क्या ?
सादर .
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