ये मेरे दिल में जो तूने
एक भांग का पौधा
बो दिया था
अब वो बड़ा हो गया है
और लत लग गई है मुझे
रोज़ दो पत्ती खाने की...
प्यार के नशे में तेरे
डूबना बड़ा अच्छा लगता है
कहते हैं कि नशा गुनाह है
मगर यहाँ किसे परवाह है
अगर मैं मुजरिम हूँ
तो सिर्फ़ तेरा
तू चाहे जो सज़ा दे दे
मंज़ूर है सब
मगर शर्त ये है कि
कभी कभी इसे सींच देना
अपने एहसासों की बौछार से !!
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी हार्दिक आभार ...आप की उपस्थिति एवं प्रशंसा हेतु ...सादर
जनाब Samar kabeer जी आदाब ...आप का शुक्रिया आपने पौदा और पौधा का कन्फ़िउजन दूर कर दिया .....सादर
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई .
सुन्दर और संवेदनशील पंक्तियाँ , बधाई आदरणीय .
बहुत बढ़िया
छोटी किन्तु मर्मस्पर्शी
आदरणीय Shubhranshu Pandey जी हार्दिक आभार ...सादर
आदरणीय Shubhranshu Pandey जी धन्यवाद शायद मैंने दो पत्ती खा कर ही लिखी थी इसलिए .....सुधार के लिये एडिट कर दिया है ...आभार
आदरणीय पौदा और पौधा में कन्फ़्युज्ड हूँ.
सादर.
सुन्दर भाव से सजी कविता पर आपको हार्दिक बधाई आ.Mohan Sethi 'इंतज़ार' जी |
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