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विश्वास की ख़ामोशी (लघु कथा)

समुद्र में मिलती नदी ने समुद्र से कहा, "बहुत खुश हूँ आज, सीमित असीम में समा रही है, कोई सीमा का बंधन नहीं..."

समुद्र चुप रहा|

उस चुप्पी को देख तट और तलहटी दोनों मुस्कुरा उठे|

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 8, 2015 at 7:33pm
बहुत सुंदर प्रस्तुति

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 6:43pm

बढिया..

हमारी कमज़ोरियाँ ही हमारी समाएँ हैं. यही हमारा सही आकलन करती हैं. एक अच्छी लघुकथा केलिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय चन्द्रेशजी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2015 at 11:02am

महज दो पंक्तियों में सीमित और असीमित के भेद को परिभाषित के दिया आपने हर चीज की सीमा होती है असीमित कुछ भी नहीं मानव कल्पना भी नहीं .

इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 12:15am

बहुत बढ़िया लघुकथा.... बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए आदरणीय चंद्रेश जी.

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 11:23pm

उस चुप्पी को देख तट और तलहटी दोनों मुस्कुरा उठे,,,,बेहद उम्दा |

Comment by kanta roy on July 2, 2015 at 10:14pm
वाह , इस नजरिए से कथा को देखने पर कथा और भी जीवंत हो उठी है । सच ही कहा आपने आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी तट और तलहटी का मुस्कुराना समंदर की सीमा के आकलन की वजह से ही है । सच है यह कि समंदर कितना भी विशाल हो अनंत नहीं हो सकता है कही तटबंध उसे बाँध ही देते है और तलहटी गहराई की सीमा जानती है । वाह !!! चंद्रेश जी बहुत खूब !!!!!
Comment by shree suneel on July 2, 2015 at 9:35pm
चंद पंक्तियों में अच्छी लघु-कथा आदरणीय चंद्रेश जी. बधाई हो.
Comment by विनय कुमार on July 2, 2015 at 9:20pm

बहुत उम्दा कल्पना , बढ़िया लघुकथा | बधाई इस रचना के लिए आदरणीय चंद्रेश जी.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 2, 2015 at 8:48pm

तट और तलहटी समुद्र की सीमाएं  जानते है वह कितना भी विशाल हो पर अनन्त नहीं है , इस लिहाज से शीर्षक फिर से गौर तलब है , सादर .

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 2, 2015 at 7:46pm

वाह! ऐसी कल्पना भी हो सकती है! बहुत बहुत बधाई! आदरणीय चंद्रेश जी!

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