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गुमनाम कर्म (लघु कथा)

"साहब ये देखिये लहलहाता खेत, दो साल पहले यहाँ बंजर जमीन थी, हम लोग जब इसे उपजाऊ बना सकते हैं तो आसपास की सारी ज़मीन क्यों नहीं?"

"बिलकुल ठीक है, इस गाँव के लिये जितने भी रुपयों का आपने प्रस्ताव भेजा है, वो मंजूर किया जाता है|"

खेत के एक कोने में हरी चुपचाप खड़ा था, उस अकेले की दो साल की मेहनत के बाद कम से कम चौधरी जी तो गुमनामी के अँधेरे से बाहर आये, जिनका पूरा परिवार अब गहनों, कपड़ों और देश विदेश की यात्राओं का हिसाब लगाने में मग्न था|

(मौलिक और अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 9, 2015 at 12:23am

आपने समाज के उस वर्ग के किये की चिन्ता की है आदरणीय जिसके किये पर एक वर्ग ऐश करता है. शोषित-शोषक का सम्बन्ध हो या बुर्जुआ-सर्वहारा का. जो है वह यही है कि तंत्र नाम भर का लोक का प्रत्यय पा सका है. अन्यथा कर्मवालों की नहीं पहुँचवालों की सत्ता है, सत्ता के सुख हैं.
इस लघुकथा के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.

भाई शुभ्रांशुजी ने बहुत ही तथ्यात्मक सुझाव दिये हैं, आदरणीय.
शुभ-शुभ

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 5, 2015 at 10:32pm

आप सभी आदरणीय जनों का हृदय से आभारी हूँ, आप ने रचना को पसंद किया| आप सभी की सराहना से मेरा मनोबल बढ़ा है| पुनः आभार |

आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी, आपका सुझाव सर आखों पर, आपका बहुत धन्यवाद लघु कथा की तह तक जाकर विश्लेषण के लिये|

Comment by Shubhranshu Pandey on July 5, 2015 at 11:16am

आदरणीय चन्द्रेश जी, 

सुन्दर कथा. किसी और के मेहनत पर मौज उडा़ने वालों की कमी नहीं है. हरी की मेहनत पर चौधरी तारीफ़ बटोर रहे हैंं. 

एक बात ये है कि चौधरी जी के गुमनामी मे जाने का भाव स्पष्ट नहीं हो पा रहा है. हरी ने किसकी जमीन पर मेहनत की है? कुछ भाव स्पष्ट हो जाये तो कथा निखर कर आयेगी. 

सादर.

Comment by shree suneel on July 4, 2015 at 1:39am
शीर्षक को सार्थक करती अच्छी लघु-कथा आदरणीय चंद्रेश जी. बधाई इस समर्थ प्रस्तुति पर आपको.
Comment by Omprakash Kshatriya on July 3, 2015 at 9:04am

आदरणीय  Chandresh Kumar Chhatlani  जी 

आप ने बहुत गहरी बात कह दी . 

बधाई इस लघुकथा के लिए .

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 3, 2015 at 7:37am
बहुत सटीक और सार्थक कथा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 1:12am

बहुत बढ़िया लघुकथा 

हार्दिक बधाई आपको आदरणीय चंद्रेश जी

शीर्षक के लिए विशेष बधाई .... शीर्षक के अनुरूप ही सार्थक लघुकथा 

Comment by maharshi tripathi on July 2, 2015 at 11:40pm

वाह !!"करे कोई पाए कोई " को चरितार्थ करती बढ़िया लघुकथा पर आपको बधाई |मजदूरों \किसानो की एहमियत हमें समझनी चहिये |

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 2, 2015 at 10:43pm
आदरणीय भाई जी क्या बात है नपे तुले शब्दो में बहुत भी सुन्दर कथा लिखी है आपने। चंद्रेश जी दिल से बधाई स्वीकार करे इस बेहतरीन लघुकथा के लिये।
Comment by विनय कुमार on July 2, 2015 at 9:19pm

मेहनत किसी की , मज़ा किसी को | बहुत कटु सच्चाई बयां करती लघुकथा , बधाई आदरणीय चंद्रेश जी.

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