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आदरणीया परि जी , गज़ल अच्छी हुई है , हार्दिक बधाइयाँ । बाक़ी सलाह तो आदरणीय राणा साहब ही दिये हैं , आपको हार्दिक बधाई ।
आदरणीया परी जी अव्वल तो आपने जो ग़ज़ल कि बहर लिखी है उसकी मात्राएँ तो सही लग रही हैं पर अरकान गलत हैं अरकान होने चाहिए "फाइलातुन फाइलातुन फा" अर्थात २१२२ २१२२ २ अर्थात बहरे रमल की मुजाहिफ सूरत नज़र आती है अन्य अशआर पर प्रतिक्रया निम्नवत है
बुझ रहा है हौसला मौला
राह कोई तो दिखा मौला....बहुत खूब अच्छा मतला हुआ है
नाम पे उसके छलकते हैं
आँख दरिया है' क्या मौला...मिसरा-ए-ऊला तो लाजवाब है पर सानी बे बहर होने से मज़ा किरकिरा हो रहा है एक सुझाव है अच्छा लगे तो रखिये अन्यथा उड़ा दीजिएगा : "आँख ये दरिया है क्या मौला"
जैसे पढ़ते हैं किताबों को
काश पढ़ते चेहरा मौला..यहाँ भी मिसरा -ए-ऊला बेहतर है सानी में आपने चेहरा को २१२ के वजन में लिया है जबकि चेहरा का सही वजन २२ होगा
शाख पर हम घर बनाते गर
हौसला होता जवाँ मौला..यह शेर तो खारिज ही हो रहा है पहले भी लोग कह चुके हैं
जेब खाली और मैं मुज़रिम
जिंदगी है गुमशुदा मौला....वाह बहुत खूब कमाल का शेर
रात आधी और नींद नहीं
है उसी का सब किया मौला..यहाँ मिसरा-ए-ऊला बे बहर हो गया
है उसे कोई फ़िक्र ही कब
ख़्वाब देकर चल दिया मौला..यहाँ भी मिसरा-ए-ऊला बेबहर हो गया
मन अभी जो बादलों में था
वो ज़मी पे आ गिरा मौला...वाह वाह वाह अच्छा शेर है ..एक छोटा सा ऐब है इस शेर में परन्तु आप अभी इसे नज़रंदाज़ करें
दर्द हद से भी जियादा है
टूटना है दिल बुरा मौला...बहुत खूब अच्छा शेर
बेवफ़ा वो हो गया शायद
डूबता है मन मेरा मौला......बहुत खूब अच्छा रवायती ख्याल पिरोया है
करके मोहब्बत 'परी' देखो
आ गए हम हैं कहाँ मौला...इस शेर का मिसरा-ए-ऊला तो बेबहर है ही साथ ही काफिया भी खारिज है|
बहरहाल आपको इस सद्प्रयास के लिए ढेर सारी बधाइयां|
जवाँ और कहाँ काफिया त्रुटिपूर्ण है . गजल के भाव तो है बाखुदा मौला
बधाई मित्र - सुन्दर रचना के लिए -
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