For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बुझ रहा है हौसला मौला

२१२ २२१२ २२
बुझ रहा है हौसला मौला
राह कोई तो दिखा मौला

नाम पे उसके छलकते हैं
आँख दरिया है' क्या मौला

जैसे पढ़ते हैं किताबों को
काश पढ़ते चेहरा मौला

शाख पर हम घर बनाते गर
हौसला होता जवाँ मौला

जेब खाली और मैं मुज़रिम
जिंदगी है गुमशुदा मौला

रात आधी और नींद नहीं
है उसी का सब किया मौला

है उसे कोई फ़िक्र ही कब
ख़्वाब देकर चल दिया मौला

मन अभी जो बादलों में था
वो ज़मी पे आ गिरा मौला

दर्द हद से भी जियादा है
टूटना है दिल बुरा मौला

बेवफ़ा वो हो गया शायद
डूबता है मन मेरा मौला

करके मोहब्बत 'परी' देखो
आ गए हम हैं कहाँ मौला


© परी ऍम. 'श्लोक'
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 924

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pari M Shlok on July 11, 2015 at 12:45pm
गिरिराज भंडारी सर आपकी टिप्पणी से उत्साह मिलता है शुक्रिया सर हौसला बढ़ाने का

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 11, 2015 at 12:39pm

आदरणीया परि जी , गज़ल अच्छी हुई है , हार्दिक बधाइयाँ । बाक़ी सलाह तो आदरणीय राणा साहब ही दिये हैं , आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by Pari M Shlok on July 11, 2015 at 12:34pm
२१२२ २१२२ २

हमने आख़िर इन किताबों सा
क्यूँ न हर चेहरा पढ़ा मौला


शाख पर फिर घर बना लेते
गर न मरता हौसला मौला


रात आधी नींद भी ग़ायब
जल रहा है ये जिया मौला


फ़िक्र है ही कब उसे मेरी
ख़्वाब देकर चल दिया मौला


करके मोहब्बत 'परी' देखो
चैन तक है खो दिया मौला


आदरणीय राणा प्रताप सर कृपया अब बताएं क्या अब कोई खामी है इसमें ताकि ग़ज़ल सुधार हो सके कोशिश की है समझने की... मार्गदर्शन करें सर...
हमने आपको सन्देश भेजने की कोशिश भी की थी किन्तु यहाँ OBO site खुलने में समस्या रहती है तो msg sent नहीं हुआ
Comment by Pari M Shlok on July 11, 2015 at 10:21am
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी एहतराम सर आपका मार्गदर्शन सर-आँखों पर हम खामियाँ ख़त्म करने की कोशिश करते हैं
Comment by Pari M Shlok on July 11, 2015 at 10:06am
rana pratap singh जी आप आते रहिए हमें गलती बताने हेतु अच्छा लगा इतना ढेर सारा गड़बड़ी आपने निकाली तो हम फिर से कोशिश कर सही करके पुनः पोस्ट करेंगे आपका मार्गदर्शन बहुत जानकारीपूर्ण रहा आपका दिल से एहतराम... शुक्रिया... आदरणीय आपके सुझाव पर हम पूर्णतया अमल करेंगे......... आपका दिन शुभ हो।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 11, 2015 at 8:53am

आदरणीया परी जी अव्वल तो आपने जो ग़ज़ल कि बहर लिखी है उसकी मात्राएँ तो सही लग रही हैं पर अरकान गलत हैं अरकान होने चाहिए "फाइलातुन फाइलातुन फा" अर्थात २१२२ २१२२ २ अर्थात बहरे रमल की मुजाहिफ सूरत नज़र आती है अन्य अशआर पर प्रतिक्रया निम्नवत है

बुझ रहा है हौसला मौला
राह कोई तो दिखा मौला....बहुत खूब अच्छा मतला हुआ है 

नाम पे उसके छलकते हैं
आँख दरिया है' क्या मौला...मिसरा-ए-ऊला तो लाजवाब है पर सानी बे बहर होने से मज़ा किरकिरा हो रहा है एक सुझाव है अच्छा लगे तो रखिये अन्यथा उड़ा दीजिएगा : "आँख ये दरिया है क्या मौला"

जैसे पढ़ते हैं किताबों को
काश पढ़ते चेहरा मौला..यहाँ भी मिसरा -ए-ऊला बेहतर है सानी में आपने चेहरा को २१२ के वजन में लिया है जबकि चेहरा का सही वजन २२ होगा 

शाख पर हम घर बनाते गर
हौसला होता जवाँ मौला..यह शेर तो खारिज ही हो रहा है पहले भी लोग कह चुके हैं 

जेब खाली और मैं मुज़रिम
जिंदगी है गुमशुदा मौला....वाह बहुत खूब कमाल का शेर 

रात आधी और नींद नहीं
है उसी का सब किया मौला..यहाँ मिसरा-ए-ऊला बे बहर हो गया 

है उसे कोई फ़िक्र ही कब
ख़्वाब देकर चल दिया मौला..यहाँ भी मिसरा-ए-ऊला बेबहर हो गया 

मन अभी जो बादलों में था
वो ज़मी पे आ गिरा मौला...वाह वाह वाह अच्छा शेर है ..एक छोटा सा ऐब है इस शेर में परन्तु आप अभी इसे नज़रंदाज़ करें 

दर्द हद से भी जियादा है
टूटना है दिल बुरा मौला...बहुत खूब अच्छा शेर 

बेवफ़ा वो हो गया शायद
डूबता है मन मेरा मौला......बहुत खूब अच्छा रवायती ख्याल पिरोया है 

करके मोहब्बत 'परी' देखो
आ गए हम हैं कहाँ मौला...इस शेर का मिसरा-ए-ऊला तो बेबहर है ही साथ ही काफिया भी खारिज है|

बहरहाल आपको इस सद्प्रयास के लिए ढेर सारी बधाइयां|

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2015 at 8:58pm

जवाँ  और कहाँ  काफिया  त्रुटिपूर्ण है  . गजल के भाव तो है बाखुदा मौला

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on July 10, 2015 at 11:44am

बधाई  मित्र - सुन्दर रचना के लिए -

Comment by Pari M Shlok on July 10, 2015 at 10:33am
करके मोहब्बत 'परी' देखो
२१२ २२१२ २२
चैन अपना खो दिया मौला
२१२ २२१२ २२


काश हमने इन किताबों सा
२१२ २२ १२ २२
चेहरा होता पढ़ा मौला
२१२ २२१२ २२

शाख पर हम घर बनाते गर
२१२ २२१२ २२
हममें होता हौसला मौला
२१२ २२१२ २२


है मेरी परवाह उसको कब
२१२ २२१२ २२
ख़्वाब देकर चल दिया मौला
२१२ २२१२ २२


मिथिलेश वामनकर जी कृपया मार्गदर्शन करें कोशिश की है सुधार की
Comment by Pari M Shlok on July 10, 2015 at 9:30am
kanta roy जी उत्साह बढ़ाने के लिए आभारी हूँ सर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
2 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service