212—212—1222 |
|
पास दिल के जो डर नहीं आता |
राहे-हक हमसफर नहीं आता |
|
आज बेटा बदल गया कितना |
एक आवाज़ पर नहीं आता |
|
मान लेता अगर कहा मेरा |
लौटकर तर-ब-तर नहीं आता |
|
बारहा तेरे दर पे आता हूँ |
तू कभी मेरे घर नहीं आता |
|
गाँव से शह्र लोग आते हैं |
किन्तु बूढ़ा शजर नहीं आता |
|
घूरता हूँ मैं आसमां, जब तक |
मेरे दिल में उतर नहीं आता |
|
मेरी औकात जो बताता है |
आइना देख कर नहीं आता |
|
हौसला हाथ बस हिलाता है |
पास मेरे मगर नहीं आता |
|
रात दिल में उतर गई ऐसे |
दिन निकलता नज़र नहीं आता |
|
जिंदगी आज बुझ गई होती |
चाँद गर बाम पर नहीं आता |
|
दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन |
कोई भी पूछकर नहीं आता |
|
आँख बादल हुई तो दिल का ये |
मोर क्यों रक्स पर नहीं आता |
|
----------------------------------------------------------- |
Comment
आदरणीय हर्ष जी ग़ज़ल पर आत्मीय प्रशंसा के लिए आभार
दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन |
कोई भी पूछकर नहीं आता |
|
रास्ता इश्क का, सफ़र मुश्किल |
एक भी राहबर नहीं आता .....वाह ,,,वाह सभी शेर एक से बढ़कर एक दिल से बधाई लीजिये मिथिलेश भैया |
|
बेहद उम्दा !!! दिली दाद क़ुबूल फरमाएं !!
''मान लेता अगर कहा मेरा
लौट कर तर-ब-तर नहीं आता '' वाह !!! दिल को छू गया ये शेर
''दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन
कोई भी पूछकर नहीं आता '' बेहतरीन !
एक बार फिर से ढेरों बधाई !
// दर्द, गम, वक्त, शर, ज़ियाँ, दुश्मन
कोई भी पूछकर नहीं आता // , वाह , गज़ब का शेर और इस पर ये कथन // खुद को शायर तो खूब कहता, पर
शायरी का हुनर नहीं आता //,माशा अल्लाह , अगर आप को नहीं आता तो हमें पढ़ना नहीं आता , समझना नहीं आता |
एक शेर आपके लिए अर्ज़ है
// वो तो आप हैं कि फिक्र नहीं , जानने का हुनर नहीं आता //. दिली दाद क़ुबूल कीजिये आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी.
निवेदन है कि इस शेर को यूं कहा है-
रात दिल में उतर गई ऐसे
दिन निकलता नज़र नहीं आता
बहुत बहुत आभार आदरणीय रवि जी ... मेरा ध्यान ही नहीं गया था. बहुत बहुत धन्यवाद
आरणीय मिथिलेश जी
दिन निकलता वाले शेर में नही लफज एडिट कर दीजिये टंकण त्रुटि रह गई है ।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बाकमाल कलाम पेश किया है आपने ...
आज बेटा बदल गया कितना
एक आवाज़ पर नहीं आता...........बेहद खूबसूरत ....सच्चई आजकल की
मेरी औकात जो बताता है
आइना देख कर नहीं आता...............इन्तेहाई खूबसूरत अहसास
खुद को शायर तो खूब कहता, पर
शायरी का हुनर नहीं आता.............अधिकतर हम जैसे लोगों का यही हाल है ...बहुत ही खूब
एक एक शेर अपनी पूरी विदा में समाया हुआ है सर दिली दाद आपके हर अहसास पर |
साभार !!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online