For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गलीज़ आदत टला-टली है -- (ग़ज़ल) --- मिथिलेश वामनकर

121-22---121-22---121-22---121-22

 

नसीब को जो कभी न रोया, उसी को किस्मत फली-फली है

जो काम आये तुरंत कर लो,  गलीज़ आदत टला-टली है

 

कुछ इस तरह से मुहब्बतों के तमाम किस्से अब आम होते 

जरा - सी सरगोशियाँ हुई फिर हजार बातें चली-चली हैं

 

ज़हीर देखे, जहान देखा, पयाम समझे, बयान है ये-  

जफ़ा का आलम बुरा-बुरा है, वफ़ा की दुनिया भली-भली है

 

तमाम आजादियों के परचम, गुजर गए फिर समझ ये आया

किसी का जूता हमारे सर पे, हमारी दुनिया तली-तली है

 

जरा ये सोचों कि यार मेरा भी किस कदर का हसीन होगा  

किसी को मेरी खबर नहीं है, उसी का चर्चा गली-गली है

 

कयाम कैसा, दयार किसका, मकां न कोई, मकीं न कोई

कहाँ ठिकाना हमें मिलेगा, नसीब अपना कबायली है

 

कोई भी आये, कोई भी देखें. पसंद या ना-पसंद कह दे

अजीब सी इन रिवायतों में हरेक बेटी छली-छली है

 

जमीन किसकी, जहान कैसा, नसीब किसका, निजाम कैसा ?

फसल में गेहूं उगाया जिसने, उसी की रोटी जली-जली है

 

कबीर के है भजन दिलों में, ग़ज़ल रगों में है राबिया की

नयन में कान्हा बसे हुए है,  लबों पे मेरे अली-अली है

 

 

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

 

Views: 847

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 28, 2015 at 4:47pm

आदरणीय पंकज जी ग़ज़ल की सराहना के लिए हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2015 at 2:40pm

जहाले मसकीं मकुन तग़ाफ़ुल दराये नैना बनाये बतियाँ ..  अमीर खुसरो की आत्मा आज जरूर निहाल हो गयी होगी. 
अंत तक आते-आते कई शेर संग्रहणीय हो गये हैं.

शुभ-शुभ

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 28, 2015 at 1:39pm

आदरणीय मिथिलेश जी, एक से बढ़कर एक शे’र हुए हैं। इनके तो कहने ही क्या

जरा ये सोचों कि यार मेरा भी किस कदर का हसीन होगा  

किसी को मेरी खबर नहीं है, उसी का चर्चा गली-गली है

 

कयाम कैसा, दयार किसका, मकां न कोई, मकीं न कोई

कहाँ ठिकाना हमें मिलेगा, नसीब अपना कबायली है

 

कोई भी आये, कोई भी देखें. पसंद या ना-पसंद कह दे

अजीब सी इन रिवायतों में हरेक बेटी छली-छली है

 

जमीन किसकी, जहान कैसा, नसीब किसका, निजाम कैसा ?

फसल में गेहूं उगाया जिसने, उसी की रोटी जली-जली है

दाद कुबूल कीजिए

Comment by Harash Mahajan on August 28, 2015 at 1:12pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत ही बेहतरीन और मुश्किल बहर पर आपने ये गज़ल  फरमाई है सर.....इसको गाकर जब देखा तो तबियत खुश हो गई |
मुताक़रीब मुसम्मन मुज़ाफ़ मक्बुज़ असलम
इस पर एक गाना है सर .....
न जाओ सईयाँ छुड़ा के बईयाँ कसम तुम्हारी मैं रो पडूँगी |
पूरी की पूरी ज़हन में उतर गयी ....दिल से निकली दाद कबूल कीजियेगा !!

सादर !!

Comment by narendrasinh chauhan on August 28, 2015 at 10:29am

कबीर के है भजन दिलों में, ग़ज़ल रगों में है राबिया की

नयन में कान्हा बसे हुए है,  लबों पे मेरे अली-अली है सुन्दर ग़ज़ल 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 28, 2015 at 10:16am
अगर कहें शेर फलां है बेहतर, तो बात बिल्कुल भली नहीं है।
ग़ज़ल की बगिया वरायटी से,भरी है कोई कमीं नहीं है।।

बहुत बहुत बधाइयाँ और नमन्

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
11 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
14 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
14 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
14 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
14 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service