2212 2212 22
क्या ख़ूब आफ़त पाल बैठा हूँ
दिल में शराफ़त पाल बैठा हूँ
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मुफ़्त इक मुसीबत पाल बैठा हूँ
बुत की मुहब्बत पाल बैठा हूँ
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क्यूँ ये सितारे हैं ख़फ़ा मुझसे?
जो तेरी चाहत पाल बैठा हूँ
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वो बेवफा कहने लगा मुझको
जबसे मुरव्वत पाल बैठा हूँ
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कोई तो तुम अब फ़ैसला दे दो
पत्थर की सूरत पाल बैठा हूँ
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गर तू तगाफुल पे अड़ा है
सुन मैं भी वहशत पाल बैठा हूँ
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वारे तमन्ना-ए-वफ़ा-ए-य़ार
ख़ुद से बग़ावत पाल बैठा हूँ
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दीवानगी है गो ख़ुराके इश्क़
हंगाम फितरत पाल बैठा हूँ
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मौलिक व् अप्रकाशित © ‘जान’ गोरखपुरी
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Comment
उत्साहवर्धन के लिए आभार आ० शिज्जू सर,जिहाफ़ की मुझे बहुत जानकारी नहीं है,आगे से इस तरह के बह्र के सम्बन्ध ज़रूर सलाह ले लिया करूँगा,आ० मार्गदर्शन बनाएं रक्खें!
kyaa baat hai mtira
बहुत बढिया प्रस्तुति .... आदरणीय शिज्जु जी की बात पर गौर कीजियेगा
बहुत बढ़िया प्रिय कृष्णा
अादरणीय जान गोरखपुरी जी ग़ज़ल के लिये बधाई कुबूल करें
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