नवेली बहू और बेटे के साथ आँगन में मेहमान जमे थे I तभी जोर जोर से तालियाँ और मर्दानी आवाजों में गाते , चार हिजड़े घर में आ गए I घबरा कर वो अन्दर आ गई I तालियों की आवाज़ चेतना में हथौड़े चला रही थी I
"बहू वो नेग लेने आये हैं I तू भी बाहर आ जा ,दूल्हे की अम्मा है तू " सास अन्दर आ गई थी I "क्या हुआ ? थक गई है ?रहने दे ,आराम कर " I
सास के बाहर जाते ही वो पलंग पर गिर गई Iआँखों से यादें बहकर चादर भिगोने लगीं Iपचास साल पहले उसके घर भी आये थे ये ,तालियाँ बजाते नेग लेने नहीं , छोटे भाई को ले जाने I बैठक में बाउजी के साथ बात चीत चल रही थी Iअम्मा बाहर खड़ी रोये जा रही थी Iवो पांच साल की बच्ची समझ नहीं पा रही रही थी कि भैया को क्यों ले जा रहे हैं I सब कुछ बदल गया उसके बाद I अम्मा विक्षिप्त हो गई I अंत के दिनों में अपने कमरे में बैठी तालियाँ बजाती रहती थीI
"आप भी ना , बाहर से ही नेग वेग देकर विदा करते I आँगन में ही बुला लिया उछल कूद करने "Iकमरे के बाहर चल रही सास ससुर की बातों ने उसे यादों से बाहर खींच लिया I
"क्यों क्या कोई अछूत हैं वो बेचारे ?वो भी किसी के कोख जाए हैं "I
यादों की कन्दरा से आती उसकी अम्मा की प्रसव पीड़ा की चीखें उसके कानों में गूँजने लगी थींI
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मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
उफ्फ्फ .... कितनी मार्मिक लघु कथा है हालाँकि ऐसी घटनाएँ देखी भी हैं और सुनी भी हैं किन्तु आपका प्रस्तुतीकरण बहुत प्रभावशाली है
जो लघु कथा को विशिष्ट बनाता है आपको दिल से बधाई प्रतिभा जी |
वाह क्या बात हैं आदरणीया _/\_सादर
बस एक बात न समझे 50 साल पहले???बहू सोच रही न????
हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा जी!बहुत ही संवेदनशील और मन को झकझोर देने वाली सशक्त प्रस्तुति !आपने इस लघुकथा के माध्यम से उन परिवारों के दर्द को उजागर किया है जो इस तरह के बच्चों के जन्म की पीडा भोगते हैं!बेहतरीन लघुकथा!
आदरणीय उस्मानी जी , उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से आपने कथा का अनुमोदन किया ,मेरा लिखना सार्थक हुआ ,आपका ह्रदय तल से आभार
आदरणीय मिथिलेश जी ,कथा पर सकारात्मक प्रतिक्रिया कर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए आपका ह्रदयतल से आभार
आदरणीया प्रतिभा जी आपकी प्रस्तुति ने भीतर तक भीगा दिया. बहुत ही मार्मिक कथा हुई है. सीधा दिल में उतर गई. आपने पीड़ा को विभिन्न आयामों के परिप्रेक्ष्य में सार्थक शब्द दिए है. पंच लाइन दिल चीर देती है. नमन आपकी लेखनी को.
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