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जालिम की दलीलें (लघुकथा )राहिला

"देखो,बच्चे बहुत थक गये है और तुम्हारी हालत भी खस्ता हो रही है । हम खच्चर कर लेते है । ये सुनते ही वो कर्कशा!सुपरिचित वाणी में कूकी-"वाह जी वाह!!फिर कैसी यात्रा?अरे थोड़ा बहुत कष्ट तो होता ही है।फिर मेरी सहेलियां कह रही थीं कि जो पुण्य पैदल वैष्णों देवी जाने में है वो...."उसने अपनी बात को वजनी बनाने में दुनिया की दलीलें दे डाली । मैं उसके स्वभाव से बहुत अच्छी तरह वाकिफ़ था,यात्रा में कोई बदमज़गी ना हो इसलिये हमने उसके आगे हथियार डाल दिये।और चल पड़े । हम खरगोश ना सही,परन्तु वो जरूर कछुये की चाल से आगे बढ़़ रही थी।लेकिन उसकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी ।थोड़ी देर बाद जब हमने पीछे मुड़कर देखा तो वो दूर-दूर तक नजर नहीं आई।हम उसके इंतेजार में वहीं बैठ गये।लगभग दस मिनट बाद वो हमें दिखाई दी,कुछ बिलकुल नई ताजा तरीन दलीलों के साथ,शान से खच्चर पर सवार।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on November 19, 2015 at 11:24am
बहुत शुक्रिया आदरणीय तेज वीर सिंह जी और आदरणीय उस्मानी जी रचना आपको पसंद आई बहुत आभार ।
Comment by saalim sheikh on November 19, 2015 at 12:10am

बेहद उम्दा ! आपकी ये लघुकथा  पढ़ कर  जो बेसाख्ता मुस्कराहट होठों पर  आ जाती यही इसे एक अलग मुक़ाम देती है , बधाई !

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 18, 2015 at 11:03pm
बहुत अच्छा व्यंग्य आज के ज़माने के फ़ितरत बाज़ लोगों पर।हार्दिक बधाई आदरणीया राहिला जी
Comment by pratibha pande on November 18, 2015 at 10:47pm

कई लोग अपने आपको हर हालत में सही साबित करने पर लगे रहते हैं  ',लगभग दस मिनट बाद वो हमें दिखाई दी,कुछ बिलकुल नई ताजा तरीन दलीलों के साथ,शान से खच्चर पर सवार ',बहुत अच्छी बनी हैं ये पंक्तियाँ बधाई आपको राहिला जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 18, 2015 at 4:23pm
ज़माने के चलन की एक तस्वीर दिखाती बढ़िया प्रस्तुति। कहें कुछ, करें कुछ । बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया राहिला जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 18, 2015 at 11:15am

लाज़वाब लघुकथा आदरणीय राहिला जी!लोग दूसरों के लिये नसीहतें देने में कोई कसर नहीं रखते मगर उन पर खुद आचरण करना कितना कठिन लगता है!

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