22---22---22---22---22---2 |
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दुख देने को आये जो हालात, सुनो |
अपना दिल भी पहले से तैनात सुनो |
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दे देना फिर तुम भी उत्तर, सुन लूँगा |
लेकिन बेटा पहले पूरी बात सुनो |
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बाबुल के आँगन से आँसू कहते है |
किस कारण से लौटी है बारात सुनो |
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एक सदी भी यारां कम पड़ जायेगी |
चाहे तो तुम मेरे दुख दिन रात सुनो |
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फिर तो वो भी सारी बातें सुन लेंगे |
उनसे अपनी पहले तो औकात सुनो |
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आज उजाले सूरज ने ही बेचे है |
करते हैं सरगोशी ये जुल्मात, सुनो |
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नाहक ही न पत्थर है हर मुट्ठी में |
शीशें वाले घर में थे वजूहात सुनो |
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सोचो तो ये कितना मुश्किल लगता है |
खुद के सीने पर सिर रख जज्बात सुनो |
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Comment
कमाल !! इस ग़ज़ल पर बस यही कह सकता हूँ, आदरणीय मिथिलेश भाई.
दे देना फिर तुम भी उत्तर, सुन लूँगा |
लेकिन बेटा पहले पूरी बात सुनो |
अय-हय-हय ! क्या टकसाली टनकदार ज़ुबान है जी ! वाह !!
फिर, ’एक सदी’ क्यों ? कुछ ख़ास है इस ’सदी’ में ? सदी को ’उम्र’ कर लेना क्या ग़लत होगा ? इसका कारण अब आपको क्या बताना, आदरणीय ? फिरभी, जीवन भर सुनने का संकल्प ही तो किसी को सुनाने हेतु निवेदन कर सकत है ! और, ऐसी अदम्यता पर ही ऐसा कोई निवेदन मान्य हो पाता है.
सोचो तो ये कितना मुश्किल लगता है |
खुद के सीने पर सिर रख जज्बात सुनो |
इस शेर केलिए कहाँ-कहाँ नहीं भटकना पड़ा होगा ! यह आपका अबतक का शेर हुआ है !! बेशक़ीमती !!!
आदरणीय मिथिलेश जी लेटेस्ट ब्लाग में '' दुख देने के लिये आये जो हालात '' पढ़ कर ये अंदाज नहीं था कि इस वाक्य के आगे एक से बढ़कर एक शेर मौजूद होगा । हर शेर के लिये दिली दाद कुबूल करें । और आखिरी शेर तो सच पूछिये उस इंसान के माद्दा ए बरदाश्त की तारीफ करनी पड़ेगी जो अपने ही सीने पर सर रख कर जज्बात को महसूस कर रहा हो । उफ ये तनहाई । आप क्या खूब कथ्य लेकर आए है । बधाई ।
बाबुल के आँगन से आँसू कहते है |
किस कारण से लौटी है बारात सुनो |
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एक सदी भी यारां कम पड़ जायेगी |
चाहे तो तुम मेरे दुख दिन रात सुनो ---वाह्ह्ह वाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है मिथिलेश भैया ,दिल से बधाई लीजिये |
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हार्दिक बधाई आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी!
एक सदी भी यारा कम पड जायेगी,चाहे तो तुम मेरे दुख दिन रात सुनो!
मज़ा आगया इस पंक्ति में!अंदर तक कोलाहल पैदा करने वाली रचना!पुनः बधाई!
मिथलेश सर बेहतरीन गजल के लिए बधाई स्वीकार करें।
दे देना फिर तुम भी उत्तर, सुन लूँगा |
लेकिन बेटा पहले पूरी बात सुनो |
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बाबुल के आँगन से आँसू कहते है |
किस कारण से लौटी है बारात सुनो आदरणीय मिथिलेश जी बहुत ही सार्थक गज़ल हुयी है पूरी गज़ल उत्तम है मगर ये दो शेर विशेष रूप से पसंद आए बहुत बधाई आपको उतम रचना कर्म के लिए .... |
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आदरणीय गुमनाम सर जी, बहुत दिनों बाद आपकी दाद पाकर दिल खुश हो गया. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरणीय श्याम नरेन् जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद.
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