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इक बात है यारों कोई शिकवा तो नहीं है
जन्नत में हर इक चीज़ है दुनिया तो नहीं है ...वाह!
मैं चाँद के बारे में बस इतना ही कहूँगा
दिलकश है मगर आपके जैसा तो नहीं है ...ग़ज़ब!
क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने आ. समर सर. शेर दर शेर दिल से दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल कीजिए. सादर.
उफ़्फ़ क्या लिखा है आदरणीय समर साहब दिल निकाल के रख दिया । हर शेर लाजवाब है|
आपकी ग़ज़लगोई के क्या कहने, इस विधा के माहिर उस्ताद हैं आप .....
आ० समर भाई जी ,हर बार की तरह एक जबरदस्त ग़ज़ल कही है मतले से मकते तक बेहतरीन इन शेरोन की तो बात ही क्या
मैं चाँद के बारे में बस इतना ही कहूँगा
दिलकश है मगर आपके जैसा तो नहीं है---वाह्ह्ह्ह
करता ही रहा है ये ख़ता करता रहेगा
इन्सान फिर इंसाँ है फ़रिश्ता तो नहीं है---कमाल का शेर
दिल से ढेरों दाद प्रेषित है |
नीचे आसुतोष जी की टिपण्णी पढ़ी तथा आ० रवि जी का प्रतिउत्तर भी
आसुतोष जी का एक शब्द 'मगर' न जाने क्या कहना चाहता है मैं भी जानने की इच्छुक हूँ ----
इस स्तर पर आपकी अभिवयक्ति काफी सुन्दर और सार्थक है. मगर ग़ज़ल लिखने की विधि काफी कठिन है क्यूंकि मैं खुद उसे सिख रहा हूँ|
वाह वाह वाह क्या लाज़वाब मतला हुआ है..... सिर धुन रहा हूँ इस मतले पर
पहला शेर भी उसी स्तर का .... लाज़वाब
चाँद वाला शेर तो कमाल है आपकी उस्तादी दिख रही है इस शेर में
हे भगवान् किस किस शेर की तारीफ़ करूँ..... अभी समरा का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है और उस पर ये लाज़वाब ग़ज़ल
आदरणीय उस्ताद जी बस नमन आपको
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