2122 1122 1122 22
किसको कितना है मिला माल,न हमसे पूछो।
हाँ! करप्शन का ये जंजाल न हमसे पूछो।
तेरे कारण हुई है, ये जो मेरी हालत है,
अब तुम्हीं आके मेरा हाल न हमसे पूछो।
ज़ेह्न-ओ-दिल से तेरी यादों को मिटा डाला,अब
बीते दिन, गुज़रे हुए साल न हमसे पूछो।
कौन आख़िर ले गया गाँव की पंचायत को,
कहाँ ग़ायब हुए चौपाल, न हमसे पूछो।
जनवरी और दिसंबर के महीने में "जय",
सूर्य तोड़ेगा कब हड़ताल न हमसे पूछो।
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(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, तहे दिल से शुक्रिया आपको।।
अच्छे अश’आर हुए हैं जयनित जी, दाद कुबूल करें।
आदरणीय जयनित जी, इस बेहतरीन प्रयास पर बहुत बहुत बधाई
एक अच्छी और बेहतर कोशिश के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय जयनित जी.
अन्य प्रतिक्रियायें बाद में पढीं, आपकी गज़ल में ही बंध कर रह गया था, इस विषय पर पहले से ही चर्चा हो चुकी है.मैंने व्यर्थ ही पूर्व प्रतिक्रया लिख दी.
आदरणीय जयनित कुमार मेहता जी,
शानदार गज़ल के लिए बधाई स्वीकार कीजिये .
तेरे कारण हुई है, ये जो मेरी हालत है,
अब तुम्हीं आके मेरा हाल न हमसे पूछो।
स्वयं के लिए एक ही स्थान पर "मेरा" और "हम" का संबोधन हिन्दी साहित्य में दोष माना जाता है, गज़ल के मामले में इसमें कितनी छूट है, मुझे इसकी जानकारी नहीं है, इस पर तो गज़ल के विद्वान ही प्रकाश डाल सकते हैं. चूंकि मुख्यतः हिन्दी से जुदा हूँ अत: क्षमा याचना सहित आपका इस पर ध्यान अवश्य ही चाहूँगा.
कौन आख़िर ले गया गाँव की पंचायत को,
कहाँ ग़ायब हुए चौपाल, न हमसे पूछो।
इस अश'आर के लिए मेरी दिली दाद स्वीकार कीजिये.
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