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आ0 भाई शेख शहजाद जी इस कथा के लिए हार्दिक बधाई ।
धूप झोंपड़ी के बच्चों को राहत देने पहुंची और वो बच्चे तो कुहरे में ही काम पर निकल गए थे ,और फिर उसके बाद धूप का शर्मिन्दा होना , दोनों ही बिम्ब अपने मर्म को बहुत अच्छे से संप्रेषित कर रहे हैं लघुकथा की सीमा में रहकर , बधाई आपको आदरणीय इस उत्कृष्ट रचनाकर्म पर
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी!बेहतरीन प्रस्तुति!
जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब , धूप और झोपड़ी को प्रतीक बनाकर कोहरे पर बहुत ही शानदार लघु कथा लिखी है आपने। ... दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
अच्छा प्रयोग,यह कोहरा कैसे छंटेगा ,मन को उद्वेलित करने वाला प्रश्न,बधाई शहजाद जी।
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