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हार्दिक आभार आ० तेजवीर सिंह जीI
आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुकरगुज़ार हूँ राहिला जीI
भाई सुनील वर्मा जी! मैं दरअसल इस तरह के सवाल की प्रतीक्षा कर ही रहा था, लेकिन किसी और की तरफ सेI बहरहाल, मैं अपनी लघुकथाओं में पात्रों को बेनाम ही रखना पसंद करता हूँ, या फिर बहुत ज़रूरी हो जाए तो एकाध नाम से काम चला लेता हूँI लेकिन गौर से देखा जाए तो इस लघुकथा में पात्रों के नाम महज़ नाम न होकर मेटाफ़ोर हैंI अत: किस ने क्या कहा यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं रह जाता, बल्कि महत्वपूर्ण वह है जो कहा गया हैI क्योंकि यह कथानक की आवश्यकता थी, तो मुझे नहीं लगता कि इतने अधिक पात्रों के समावेश से लघुकथा का कोई सन्देश गड्डमड्ड हो रहा हैI और यदि सन्देश साफ़-शफ्फाक़ रह सके तो पात्रों की सीमित संख्या के लिए आग्रही होना तर्कसंगत नहीं होगाI
लेकिन इस मुश्किल काम में वहाँ हमारा साथ कौन देगा?"
गोरी महिला ने मेज़ पर दोनों हाथ रखे, और चेहरे पर कुटिलतापूर्ण मुस्कुराहट लाते हुए उत्तर दिया:
"भारत की सत्ता में मौजूद मीर जाफर और जयचन्द के वंशजI"
वाह सर वाह क्या कथा का सार निकाला है .... सत्ता की सत्यता को बेपर्दा करती इस शानदार लघुकथा के लिए जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है। बहरहाल आपको हार्दिक हार्दिक बधाई आ.योगराज सर।
मुझे लगता है कि ये आपके द्वारा लिखी गयी समस्त सार्थक , बेमिशाल कथाओं में ये कथा सर्वश्रेष्ठ लघुकथा है . इसको बड़ी संजीदगी से कई -कई बार पढने के बाद मुझे ये लगा है .कारण ये है कि यहाँ बिम्बों के प्रत्यारोपण को जिस तरह से किया गया है वो अपरिकल्पनीय है .
भारत के इतिहास में सबके सब लुटेरे शासक रहे है और आज के देशकाल के सन्दर्भ में जिस तरह से देश की प्राकृतिक व् मानवीय मूल्यों के साथ उनके श्रमबल का दोहन कर वैश्वीकरण करके भौतिकवादिता को बढ़ावा देकर जिस मानसिक स्तर पर रोपित किया जा रहा है वो हम भारतीयों को भविष्य में गुलामी के कगार तक पहुंचाने के लिए काफी है .
एक छोटी सी लघुकथा में कितना बड़ा परिवेश आपने रोपण किया है . शिल्प मुग्ध करने वाला है यहाँ .
लाजवाब लघुकथा , सच कहूँ तो आँखों को चौधियाने वाली लघुकथा है ये .
बारम्बार अभिनन्दन आपको .
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