२२ २२ २२ २२ २२ २
हँसते दर्पण जब जब तेरी आँखों के
रफ़्ता रफ़्ता महके गुलशन साँसों के
धीमे धीमे होती है ये रात जवाँ
ख़्वाब मचलते हैं प्यासे पैमानों के
कैसे डूबे भँवरों में किश्ती नादां
सिखलाते हमको गड्ढे रुखसारों के
गोया नभ से चाँद उतर आया कोई
चेह्रे से हटते ही साए बालों के
पार उतर आये हम तूफां से बचकर
मस्त सफीने पाए तेरी बाहों के
खूब शफ़ा मिलती है गम के छालों को
जब लगते हैं मर्हम तेरी बातों के
अपने आँगन में भी महके फूल कभी
मौसम आते जाएँ ये मुलाकातों के
चाहे कितनी गर्दिश में हो हम दोनों
टूटें ना ये कौल हमारे वादों के
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० तस्दीक जी,आपकी बात सही है आपकी बातों पर गौर करने के बाद ग़ज़ल को गाकर देखा तो आपकी बात सही निकली बहुत बहुत आभार आपका ध्यान दिलाने के लिए |अब इन मिसरों को संशोधन के साथ पेश कर रही हूँ |
आदरणीया राजेश दीदी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. शेर एक से बढ़कर एक हुए है. मतला से लेकर छालों वाले शेर तक लाज़वाब ग़ज़ल है. हार्दिक बधाई. यह भी सही है कि मात्रा गिराने की छूट के बावजूद शब्दकलों के चौकल बढ़िया पूरे न होने के कारण लय बाधित हो रही है. क्योकि मात्रा गिराने के लिए बहुत जोर देना पड़ रहा है तब तक लय भंग हो जाती है. इसे ऐसे कहने से शायद लय भंग न हो -
अपने आँगन में भी महके फूल कभी
मौसम आते जाएँ ये मुलाकातों के
चाहे कितनी गर्दिश में हो हम दोनों
टूटें कभी न कौल हमारे वादों के
सादर
बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है दीदी... तस्दीक़ साहब की बात से मुतमईन हूँ..लय बिखर रही है वर्णित मिसरों में ..
सादर
मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा , आपके मतले को जो गुनगुनाने में लय है वह इन दोनों मिसरों में नहीं नज़र आरही है तकती --------- मौसम ये आते जाएँ मुलाक़ातों के 22 2 22 22 1222 2
टूटें न कभी बस क़ौल अपने वादों के 22 1 12 2 21 22 22 2
मतला (तकती ) ------------------ हँसते दर्पण जब जब तेरी आँखों के 22 22 2 2 22 22 2
रफ़्ता रफ़्ता महके गुलशन साँसों के 22 22 22 22 22 2
यह हिंदी बह्र ( मुतकारिब -मुसद्दस -मुजाइफ ) ( 22 --22 --22 --22 --22 --2 ) है आप खुद एक बार गौर करके देखिये। .... शुक्रिया
आ० तस्दीक जी ग़ज़ल आपको पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया | आपने जी अशआरों को कोट किया है उनकी बह्र इस तरह है
२२/मौसम २/ये २२/आते २१/ जाएँ १२ मुला /२२/कातों २/के---इसमें क्या गलती है मैं समझी नहीं
टूटें न कभी बस कौल अपने वादों के ---२२/टूटें २२/नकभी /२/बस २/कौ २२/लपने २२/वादों २/के
इस बह्र में २२ को ११२ या २११ करने की छूट होती है जहाँ तक मुझे पता है
मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा , अच्छी ग़ज़ल कही है आपने ,मुबारकबाद शेर दर शेर क़ुबूल फरमाएं। ....... शेर नंबर 7 और 8 के सानी मिसरे बह्र में नहीं लग रहे हैं , क़ाफ़िया मुलाक़ातों भी फिट नहीं है ,देख लीजिएगा। ....... शुक्रिया
आ० नरेन्द्र सिंह जी, ग़ज़ल पर सर्वप्रथम शिरकत और दाद के लिए तहे दिल से शुक्रिया |
खूब सूरत ग़ज़ल के लिए बधाई कुबूल करे
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