तपकर लोहा आग में, बन जाता फौलाद,|
मात-पिता की आँच में, संस्कारी औलाद |
संस्कारी औलाद, प्रगति में हाथ बँटाते
करते जो पुरुषार्थ, काम से कब घबराते
कह लक्ष्मण कविराय,युवक ले शिक्षा जमकर
सक्षम और कुशाग्र, बने गुरुकुल में तपकर |
सुनकर लंबित फैसला, विधवा हुई निढाल
दुख सहते वादी मरा, घर का खस्ता हाल |
घर का खस्ता हाल, हुई जब पेंशन लंबित
सुनने हक़ में न्याय, हुआ न वहाँ उपस्थित
लक्ष्मण माँगे न्याय, परिस्थिति हो जब दुखकर
मिले देर से जीत, दुखी वह होता सुनकर ||
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत आप्भार आदरनीय सौरभ पाण्डेय जी | सादर
हार्दिक आभार आपका श्री अशोक कुमर रक्ताले जी | सादर
हार्दिक आभार श्री रामबली गुप्ता जी | ना की जगह न टंकण त्रुटी वश हो गया | सादर
बहुत खूब आदरणीय लक्ष्मण भाईजी. संदेशपरक तथा घटना प्रधान छन्दों केलिए हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय रामबली गुप्ता जी का सुझाव अनुमन्य है,आदरणीय
आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर, सुंदर कुण्डलिया छंद रचे हैं. बहुत बधाई स्वीकारें. फिरभी प्रथम छंद में "संस्कारी औलाद, प्रगति में हाथ बँटाते" इस पंक्ति को एक बार पुनः देख लें. सादर.
जी | टंकण त्रुटि हो गई | सुधार करता हूँ | छंद सराहने के लिए सादर आभार आदरणीय सुशील सरना जी
हार्दिक आभार श्री श्याम नारायण वर्मा जी
आदरणीय बहुत सुंदर संदेशपरक कुण्डलिया का सृजन हुआ है। प्रथम कुण्डलिया की दूसरी पंक्ति के अंत में औलाद के स्थान पर आलाद टंकित हो गया है शायद टंकण त्रुटि है। कृपया देख लें। इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर |
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