फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान
ओज पर तुझको देखना है मुझे
पत्र में उसने ये लिखा है मुझे
नस्ल-ए-नव से मदद का तालिब हूँ
बुर्ज नफ़रत का तोड़ना है मुझे
क्या कहूँ ,कब मिलेगा मीठा फल
सब्र करना तो आ गया है मुझे
आज तेरे बग़ैर ये जीवन
नर्क जैसा ही लग रहा है मुझे
लाख दुश्वारियाँ हों, जाऊँगा
इश्क़ तेरा बुला रहा है मुझे
नर्म गुफ़्तार से "समर" देखो
आज फिर ज़ैर कर लिया है मुझे
_________
ओज :- ऊँचाई
नस्ल-ए-नव :- नई नस्ल
बुर्ज :- गुम्बद
गुफ़्तार :- बोलचाल
"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर साहब बहुत ही खूब सूरत तरीके से आपने अो बी ओ को परिभाषित किया है इस के लिये आपको हार्दिक बधाई । आदरणीय तसदीक साहब ने तकाबुले रदीफेन का प्रश्न किस तरह से उठाया है समझ नहीं आया हम जितना सीख पाये है उसके हिसाब से ओ और ऐ दोनो की मात्राएं अलग है दोनो के उच्चारण में स्वर भी भिन्न है । ( हम यहां हिंदी भाषा के माध्यम से ही गजल की जानकारी ले रहे है ) तसदीक साहब किस अरूज के हिसाब से कह रहे है अगर स्प्ष्ट करें तो जानकारी में हमारे भी इजाफा हो जाए । सादर ।
आदरणीय समर कबीर जी, आपने ओपन बुक्स ऑनलाइन को समर्पित शानदार ग़ज़ल कही है. अद्भुत. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई.आपकी प्रस्तुतियों से मंच सदैव समृद्ध होता रहा है. हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय समर साहिब ओ बी ओ के सफल 6 वर्षों के सफर को आपने अपनी कलम से यादगार बना दिया है। इस दिलकश अशआरों वाली ग़ज़ल के लिए बन्दा दिल से आपको सलाम _/\_ करता है।
जनाब समर साहब नायाब ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद। आदरणीय योगराज सर से सहमत हूँ, मिसरा तरही मुशायरे के लिए परफेक्ट है।
//सब्र करना तो आ गया है मुझे//
यह मिसरा भविष्य में हमारे तरही मुशायरे के लिए परफेक्ट रहेगा I :))
आपके टेलेफोनिक आदेश के बाद मक़ते में तरमीम कर दी गई है मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब !
ओपन बुक्स ऑनलाइन के छ: वर्ष पूर्ण होने पर छ: अशआर से सुशोभित यह ग़ज़ल और मिसरों के पहले अक्षर को जोड़ते हुए ओपन बुक्स ऑनलाइन लिख जाना ....आहा !! नतमस्तक हूँ आदरणीय समर साहब, सभी अशआर एक से बढ़कर एक हुए हैं, बहुत बहुत बधाई.
मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ओपन बुक्स ऑनलाइन को समर्पित बेहतर ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। ... माफ़ कीजिये जानकारी के लिए पूछ रहा हूँ , क्या मक़ते में तकाबुले रदीफेन सूत नहीं होगा। ........ शुक्रिया
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