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भुजंगप्रयात छन्द

दिलों में सदा प्रेम ही हो हमारे।
डिगे ना कभी पाँव देखो तुम्हारे।।
भले सामने हो घना सा अँधेरा।
निराशा न थामो मिलेगा सवेरा।१।

हमेशा चलो सत्य की राह पे ही।।
जलाओ दिए नेह के नेह से ही।।
चलो आज सौगन्ध लेके कहेंगे।
सदा दूसरों की भलाई करेंगे।२।

✍ डॉ पवन मिश्र

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by डॉ पवन मिश्र on May 28, 2016 at 8:04am
छन्द पर आप सबकी बेशकीमती टिप्पणियों और मार्गदर्शन के लिये हृदय तल से आभार। आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों में जो कुछ भी जोड़ तोड़ कर पा रहा हूँ उसका काफी हद तक श्रेय ओबीओ में आपके लेखो को है। गत छः माह से चुप्पे चुप्पे उन्हें पढ़ा करता था। प्रस्तुतिकरण का यह पहला प्रयास है। आपकी बेशकीमती राय को भविष्य के लिये गंठिया लिए हैं। आप सभी का पुनः आभार
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 27, 2016 at 7:58pm

आ०  पवन जी / आपने मात्रिक निर्वाह् तो  किया पर उपदेश भी बिना  किसी उचित प्रसंग  के कैसे ?    आ० सौरभ जी  की हिदायत पर अमल करें. सादर.                                             


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Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2016 at 1:08am

छन्द की प्रत्येक पंक्ति अलग-अलग शिल्पबद्ध है. किन्तु, इससे रचना प्रक्रिया पूर्ण हुई, कैसे कहें ?

पहली दो पंक्तियों का उदाहरण लें. प्रेम हमारे दिलों में हों, ठीक । किन्तु, इससे किसी को ये हिदायत देने का हक़ कैसे मिल जाता है कि, देखो, तुम्हारे पाँव न डिगें ?

भले सामने हो घना सा अँधेरा।
निराशा न थामो मिलेगा सवेरा।१।
उपर्युक्त दोनों पंक्तियों में बात कुछ सँभली हुई दिख रही है. 


हमेशा चलो सत्य की राह पे ही।।
जलाओ दिए नेह के नेह से ही।।

चलो आज सौगन्ध लेके कहेंगे।
सदा दूसरों की भलाई करेंगे।२।

यह उपदेशात्मक शैली और भली लगती जब इस रचना का सही उद्येश्य स्पष्ट होता. 

वैसे, छान्दसिक पंक्तियाँ ही लिख पा रहे हैं आदरणीय, यह कम बड़ी बात नहीं है. सतत अभ्यासरत रहें. 

शुभेच्छाएँ

Comment by बशर भारतीय on May 26, 2016 at 7:30am
अच्छे भाव हैं आ. पवन जी बधाई
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 25, 2016 at 9:05pm

सुंदर छंद हुए है आदरणीय बधाई स्वीकारें | 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 25, 2016 at 7:37pm

आदरणीय डॉ. पवन मिश्र जी सादर, सुंदर भुजंगप्रयात छंद रचे हैं.बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. फिरभी कहूंगा. छंदों में 'पर' के लिए 'पे' और 'कर' के लिए 'के' लेने से बचना चाहिए.  सादर.

Comment by Samar kabeer on May 25, 2016 at 2:34pm
जनाब डॉ.पवन मिश्र जी आदाब,बहुत सुंदर छन्द लिखे आपने इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on May 25, 2016 at 1:55pm

आदरणीय पवन मिश्रा जी बहुत ही सुंदर भावों की प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Ravi Shukla on May 25, 2016 at 12:47pm

आदरणीय पवन मिश्र जी बधाई स्‍वीकार करें छंदो के प्रति आपका अनुराग देख कर अच्‍छा लगा ।

Comment by डॉ पवन मिश्र on May 25, 2016 at 11:10am
आभार आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी

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