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आ० पवन जी / आपने मात्रिक निर्वाह् तो किया पर उपदेश भी बिना किसी उचित प्रसंग के कैसे ? आ० सौरभ जी की हिदायत पर अमल करें. सादर.
छन्द की प्रत्येक पंक्ति अलग-अलग शिल्पबद्ध है. किन्तु, इससे रचना प्रक्रिया पूर्ण हुई, कैसे कहें ?
पहली दो पंक्तियों का उदाहरण लें. प्रेम हमारे दिलों में हों, ठीक । किन्तु, इससे किसी को ये हिदायत देने का हक़ कैसे मिल जाता है कि, देखो, तुम्हारे पाँव न डिगें ?
भले सामने हो घना सा अँधेरा।
निराशा न थामो मिलेगा सवेरा।१।
उपर्युक्त दोनों पंक्तियों में बात कुछ सँभली हुई दिख रही है.
हमेशा चलो सत्य की राह पे ही।।
जलाओ दिए नेह के नेह से ही।।
चलो आज सौगन्ध लेके कहेंगे।
सदा दूसरों की भलाई करेंगे।२।
यह उपदेशात्मक शैली और भली लगती जब इस रचना का सही उद्येश्य स्पष्ट होता.
वैसे, छान्दसिक पंक्तियाँ ही लिख पा रहे हैं आदरणीय, यह कम बड़ी बात नहीं है. सतत अभ्यासरत रहें.
शुभेच्छाएँ
सुंदर छंद हुए है आदरणीय बधाई स्वीकारें |
आदरणीय डॉ. पवन मिश्र जी सादर, सुंदर भुजंगप्रयात छंद रचे हैं.बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. फिरभी कहूंगा. छंदों में 'पर' के लिए 'पे' और 'कर' के लिए 'के' लेने से बचना चाहिए. सादर.
आदरणीय पवन मिश्रा जी बहुत ही सुंदर भावों की प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय पवन मिश्र जी बधाई स्वीकार करें छंदो के प्रति आपका अनुराग देख कर अच्छा लगा ।
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