For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भुजंगप्रयात छन्द

दिलों में सदा प्रेम ही हो हमारे।
डिगे ना कभी पाँव देखो तुम्हारे।।
भले सामने हो घना सा अँधेरा।
निराशा न थामो मिलेगा सवेरा।१।

हमेशा चलो सत्य की राह पे ही।।
जलाओ दिए नेह के नेह से ही।।
चलो आज सौगन्ध लेके कहेंगे।
सदा दूसरों की भलाई करेंगे।२।

✍ डॉ पवन मिश्र

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1056

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ पवन मिश्र on May 28, 2016 at 8:04am
छन्द पर आप सबकी बेशकीमती टिप्पणियों और मार्गदर्शन के लिये हृदय तल से आभार। आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों में जो कुछ भी जोड़ तोड़ कर पा रहा हूँ उसका काफी हद तक श्रेय ओबीओ में आपके लेखो को है। गत छः माह से चुप्पे चुप्पे उन्हें पढ़ा करता था। प्रस्तुतिकरण का यह पहला प्रयास है। आपकी बेशकीमती राय को भविष्य के लिये गंठिया लिए हैं। आप सभी का पुनः आभार
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 27, 2016 at 7:58pm

आ०  पवन जी / आपने मात्रिक निर्वाह् तो  किया पर उपदेश भी बिना  किसी उचित प्रसंग  के कैसे ?    आ० सौरभ जी  की हिदायत पर अमल करें. सादर.                                             


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2016 at 1:08am

छन्द की प्रत्येक पंक्ति अलग-अलग शिल्पबद्ध है. किन्तु, इससे रचना प्रक्रिया पूर्ण हुई, कैसे कहें ?

पहली दो पंक्तियों का उदाहरण लें. प्रेम हमारे दिलों में हों, ठीक । किन्तु, इससे किसी को ये हिदायत देने का हक़ कैसे मिल जाता है कि, देखो, तुम्हारे पाँव न डिगें ?

भले सामने हो घना सा अँधेरा।
निराशा न थामो मिलेगा सवेरा।१।
उपर्युक्त दोनों पंक्तियों में बात कुछ सँभली हुई दिख रही है. 


हमेशा चलो सत्य की राह पे ही।।
जलाओ दिए नेह के नेह से ही।।

चलो आज सौगन्ध लेके कहेंगे।
सदा दूसरों की भलाई करेंगे।२।

यह उपदेशात्मक शैली और भली लगती जब इस रचना का सही उद्येश्य स्पष्ट होता. 

वैसे, छान्दसिक पंक्तियाँ ही लिख पा रहे हैं आदरणीय, यह कम बड़ी बात नहीं है. सतत अभ्यासरत रहें. 

शुभेच्छाएँ

Comment by बशर भारतीय on May 26, 2016 at 7:30am
अच्छे भाव हैं आ. पवन जी बधाई
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 25, 2016 at 9:05pm

सुंदर छंद हुए है आदरणीय बधाई स्वीकारें | 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 25, 2016 at 7:37pm

आदरणीय डॉ. पवन मिश्र जी सादर, सुंदर भुजंगप्रयात छंद रचे हैं.बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. फिरभी कहूंगा. छंदों में 'पर' के लिए 'पे' और 'कर' के लिए 'के' लेने से बचना चाहिए.  सादर.

Comment by Samar kabeer on May 25, 2016 at 2:34pm
जनाब डॉ.पवन मिश्र जी आदाब,बहुत सुंदर छन्द लिखे आपने इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on May 25, 2016 at 1:55pm

आदरणीय पवन मिश्रा जी बहुत ही सुंदर भावों की प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Ravi Shukla on May 25, 2016 at 12:47pm

आदरणीय पवन मिश्र जी बधाई स्‍वीकार करें छंदो के प्रति आपका अनुराग देख कर अच्‍छा लगा ।

Comment by डॉ पवन मिश्र on May 25, 2016 at 11:10am
आभार आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service