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ग़ज़ल - पूछ दबी तो रो देते हैं , अच्छे अच्छे -- ( गिरिराज भंडारी )

22   22   22   22   22   22 ( बहरे मीर )

हम तो रह गये देख के मंज़र, हक्के बक्के 

सारे मूछों वाले निकले ब्च्चे बच्चे

 

अजब न समझें, पूँछ दबी तो कुत्ता रोया

पूछ दबी तो रो देते हैं , अच्छे अच्छे

 

परिणामों की आशा चर्चा से मत करना

केवल बातों के निकलेंगे लच्छे लच्छे

 

हर दिमाग में छन्नी ऐसी लगी मिलेगी

सारे बाहर रह जाते हैं , सच्चे सच्चे

 

इक चावल का दाना देखो, कच्चा है गर

सारे चावल तुम्हें मिलेंगे , कच्चे कच्चे

 

हम कछुवे सा तरस रहे हैं,रन दो रन को

उनका है फरमान कि मारो छक्के छक्के

 

खून उबल कर गैरों पर जो बह आया था

जमे दिखे क्यूँ आज बताओ, थक्के थक्के

 

उसने भी तो हुक़्म उदूली की महफिल में

उसको भी तो कोई मारो धक्के वक्के

************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 13, 2016 at 10:12am

आदरनीय जयनित भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 13, 2016 at 10:11am

आदरणीय सुशील सरना भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 12, 2016 at 9:01pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , व्यवस्था का कितना सुन्दर चित्रण , बधाई , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2016 at 8:27pm

वाह  वाह  मजा  आ गया ये ग़ज़ल पढके बहुत ही रोचक अंदाज में आज के सामयिक मुद्दों पर तंज कसा है आद० गिरिराज जी दाद स्वीकरें इस शानदार प्रस्तुति के लिए  

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 12, 2016 at 6:23pm
बहुत ही धारदार ग़ज़ल है आदरणीय गिरिराज भंडारी जी। बहुत बहुत बधाई आपको।
Comment by Sushil Sarna on July 12, 2016 at 4:06pm

आदरणीय गिरिराज जी भाई साहिब इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 11:14am

आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाई  के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2016 at 11:13am

आदरणीय महेन्द्र भाई , गज़ल की मुखर सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।

Comment by Samar kabeer on July 12, 2016 at 11:11am
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2016 at 10:28am
बहुत ही ग़ज़ब की ग़ज़ल लिखी है आपने सर, क़ाफ़िया लाजवाब है! हम कछुवे सा तरस रहे हैं,रन दो रन को, उनका है फरमान कि मारो छक्के छक्के.. वाह! दिली दाद क़ुबूल फ़रमाएँ, सादर!

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