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दो तुलनात्मक द्रश्यों को बिम्बात्मक शैली में प्रस्तुत किया है रचना में मुझे तो बहुत अच्छी लगी बाकी विद्वद्जन मार्ग दर्शन कर चुके हैं
जिस पर आप संज्ञान ले चुके हैं आपको बहुत बहुत बधाई आद० रामबली जी |
आ० राम बली जी , भाषा विज्ञान में एक term है - अर्थ संकोच (Contraction of meaning ). विस्तृत अर्थों के वाचक शब्द जब भाषागत परिवर्तन के कारण संकुचित अर्थों में प्रयुक्त होने लगते हैं तो इस प्रक्रिया को अर्थ संकोच कहा जाता है . महर्षि यास्क ने अपनी कृति 'निरुक्तम 'में वस्तुओं के नामकरण पर विचार करते हुए लिखा है की गो, अश्व, पृथिवी आदि शब्द अत्यंत विस्तृत अर्थ के वाचक हैं परन्तु वर्तमान समय मे ये किसी अर्थ विशेष में रूढ़ हो गए हैं जिन्हें हम सब जानते हैं . ' गच्छतीति गौ:' इस व्युत्पत्ति के अनुसार चलने वाले को गाय कहते हैं . मनुष्य तथा पशु पक्षी भी चलते हैं पर उन्हें गाय नहीं कहा जाता ,. कहने का तात्पर्य यह है कि प्रयोग हमेशा लोक व्यवहार के अनुसार होता है , व्युत्पत्ति के आधार पर नहीं . यही अर्थ संकोच है . अर्थ संकोच के कुछ उदाहरणों में जलधि , वारिधि , नीरधि आदि शब्द भी है इनके अनुकरण पर हम प्रेमधि और अश्रुधि नहीं कर्र सकते . आप विद्वान् कवि है इसलिए इतना कहने का साहस कर सका . सादर .
आप अभी छान्दसिक रचनाओं पर ही ध्यान केन्द्रित रखें तो आपका अभ्यासकर्म विन्दुवत रहेगा. अतुकान्त रचनाओं के विषयवस्तु या तो बहुत बदले हुए होते हैं या उनकी मूल दशा वैचारिक अधिक हुआ करती है न कि शब्दों और भावों का ललित संयोजन.
शुभेच्छाएँ
ऐसी प्रस्तुतियाँ अभ्यासकर्म का हिस्सा है. वस्तुतः लेखन और पठन साथ-साथ चलें, आदरणीय राजबली जी. लेखन हेतु विषयवस्तु ही नहीं, लेखकीय शिल्प तथा शैली भी स्पष्ट होती है.
शुभकामनाएँ
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