“बच्चों की बहुत याद आएगी बेटी इस बार मिंटू तो बड़ा भी हो गया है और समझदार भी बहुत अच्छी अच्छी बातें करता है दस दिन कैसे कटे पता ही नहीं चला| बहुत कम छुट्टी लेकर आते हो बेटा” नाश्ता खत्म करके प्लेट बहू की तरफ बढाते हुए मिंटू को प्यार से दुलारते हुए देशराज ने पास बैठे अपने बेटे चन्दन से कहा |
“ज्यादा छुट्टी कहाँ मिलती है पापा मिंटू के स्कूल की भी समस्या है और फिर खुशबू की शादी में भी तो आना है फिर छुट्टी लेनी पड़ेगी” चन्दन ने कहा |
“हाँ बेटा वो तो है” कहकर पापा चन्दन की आँखों में देखने लगे इन दिनों के दौरान ऐसा कई बार हुआ की बातचीत करते करते जैसे ही पिता बेटे की आँखों में देखने लगते तो बेटा किसी न किसी बहाने से उठकर चल देता और पिता शून्य में ताकते रह जाते |
“पापा क्या बात है आप कुछ कहना चाहते हैं? कहिये क्या कहना है”?
“हाँ बेटा, एक बात कई दिनों से कहना चाह रहा था दरअसल तुम्हारी छोटी बहन खुशबू की शादी के खर्चे को लेकर बात करनी थी बहुत खींच तान करके भी कुछ पैसे कम पड़ रहे हैं वैसे वो लोग अच्छे हैं मांग तो उनकी कोई नहीं है फिर भी उनकी हैसियत को देखते हुए अच्छी शादी तो हमें करनी ही पड़ेगी अपने पास इतने पैसे हों कि अचानक जरूरत पड़ आये तो बेइज्जती ना हो तो ...मैं..मैं चाहता था की कुछ पैसों का इंतजाम यदि तुम कर सको तो ...”
कुछ देर की चुप्पी के बाद... “देखो पापा मैंने आपको ये पहले भी कहा था कि हमारे पास अभी इतनी बचत नहीं है मुश्किल से गुजारा होता है फिर हवाई जहाज से हर साल यहाँ छुट्टी आने जाने में ही कितना खर्च हो जाता है ऊपर से मिंटू की पढ़ाई का खर्च छोटी बेटी का खर्च बस आप भी ना ...फ़ालतू की चिंता करते हो जब लड़के वाले कुछ मांग नहीं रहे तो जितना है उसमे से ही सिंपल शादी करदो”कह कर चन्दन फोन में व्यस्त हो गया |
“दादा जी क्या शादी में बहुत सारे पैसे लगते हैं ?मिंटू ने पूछा |
“हाँ बेटा लगते तो हैं” दादा ने अपने पनीली आँखों को छुपाते हुए धीरे से कहा |
इतने में मिंटू झटके से उठा और अंदर की तरफ भागा जब तक कोई कुछ समझ पाता मिंटू अपने दोनों हाथों में अपनी गुल्लक पकडे हुए दौड़ता हुआ आया और उसे दादा के सामने टेबिल पर फोड़ दिया सब सिक्के खनखनाते हुए दादा के सामने कुछ गोदी में बिखर गए|
“ये लो दादा जी बुआ की शादी के लिए जितने पैसे आपको चाहिए सारे ले लो | पापा तो पैसे बचाते ही नहीं हैं मम्मी भी कभी-कभी यही कहती हैं और अब एक बड़ी सी नई गुल्लक और लाऊँगा उसमे अपनी छोटी बहन पिंकी की शादी के लिए खूब सारे पैसे इकट्ठे करूँगा ताकि बड़ा होने पर मुझसे यदि पापा माँगें तो मैं मना न कर सकूँ”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
विनय कुमार जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से आभारी हूँ
वाह, बहुत प्यारी रचना है आ राजेश कुमारीजी, मन को छू गयी| बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए
आद० सुरेन्द्र भैया मेरी इस लघु कथा पर आपकी उपस्थिति और सराहना दोनों की हृदय से आभारी हूँ अपने विचारों से इस लघु कथा के मर्म का अनुमोदन किया इसके लिया अतिशय आभार |
प्रिय प्रतिभा जी मेरी इस लघु कथा पर मर्म की गहराई को छूते हुए आप जैसी कहानीकार की सार्थक प्रतिक्रिया आई मेरा लिखना सफल हुआ दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ |
बच्चे सब हमें ही देख कर सीखते हैं और समय समय पर हमारे आगे आईना भी रख देते हैं .....आज के समय में कच्ची पड़ती जा रही रिश्तों की डोर पर एक सार्थक और बहुत प्रभावशाली रचना आई है आपकी कलम से ....हार्दिक बधाई प्रेषित है आदरणीया राजेश जी
आद० indravidyavachaspatitiwari जी ,लघु कथा के मर्म तक पँहुचकर दी गई इस प्रतिक्रिया हेतु दिल से शुक्रगुजार हूँ |बहुत बहुत आभार आपका |
्गुल्लक कहानी से यह पता चलता है कि बाप बेटे में कैसी कशमकश की स्थिति चल रही है तभी पोता कहता है कि मैं अपने पिता को कमी नहीं महसूसने दूंगा। वाह कहानी ने मन को मोह लिया ।सधन्यवाद ।ढेरों बधाईयां।
आद० समर भाई जी,आपको ये लघु कथा पसंद आई मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ |
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