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मुल्क भी हैरान है ऐसा मदारी देखकर...

एक करतब दूसरे करतब से भारी देखकर

मुल्क भी हैरान है ऐसा मदारी देखकर,

 

जिनके चेहरे साफ दिखते हैं मगर दामन नहीं

शक उन्हें भी है तेरी ईमानदारी देखकर,

 

उम्रभर जो भी कमाया मिल गया सब खाक में

चढ गया फांसी के फंदे पर उधारी देखकर,

 

मुल्क में हालात कैसे हैं पता चल जाएगा

देखकर कश्मीर या कन्याकुमारी देखकर,

 

सर्द मौसम है यहां तो धूप भी बिकने लगी

हो रही हैरत तेरी दूकानदारी देखकर,

 

इस तरह के नोट चूरन में निकलते थे कभी

सब यही कहते दिखे कल दो हजारी देखकर,

 

देखने सूरत गया था आइने के सामने

आईना रोने लगा हालत हमारी देखकर।। # — (अतुल)

                           मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 20, 2016 at 7:23am
एक साथ तंज कसती/व्यंग्य/कटाक्ष करती सबक़ सिखाती बेहतरीन यथार्थ पूर्ण ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय अतुल कुशवाह जी। मदारी को ज़्यादा व्यवस्थाओं की ज़रूरत नहीं होती- डमरू, बंदर और सम्मोहित भीड़ बस! फिर भले चक्का जाम हो जाये!! अंतिम दोनों अशआर बेहतरीन।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 19, 2016 at 10:13pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय अतुल जी, दाद कुबूल करें।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 19, 2016 at 3:22pm

इस उम्दा ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई आदरणीय ..वर्त्तमान सन्दर्भों को बखूबी चित्रित करती शानदार रचन 

Comment by Mirza Hafiz Baig on November 19, 2016 at 12:35pm

उम्दा गज़ल । बहुत खूब!! अतुल भाई, मुबारकबाद कुबूल करें ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2016 at 4:41pm

सामयिक गजल है अच्छी लगी , आख़िरी शेर उम्दा है . 

Comment by Samar kabeer on November 17, 2016 at 2:56pm
जनाब अतुल कुशवाह जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,ताज़ा हालात पर,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
चौथे और पांचवें शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर का दोष है'मुल्क के'और 'मौसम में'देखिएगा ।
और हाँ आपने ग़ज़ल के साथ अरकान नहीं लिखे,ये इस मंच का नियम है ।

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