For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अधूरी तिश्नगी ...

अधूरी तिश्नगी ...

कैसे भूल सकती हूँ
वो रात
वो बात
जो एक चिंगारी से
शुरू हुई थी

वो चिंगारी
मेरी रगों में
धीरे धीरे
आग बनकर फैलती गयी
और मैं
चुपचाप उस आग में
जलती रही

मैं
खामोशियों के बियाबाँ में
गूंगी बनी
अपने जज़्बातों से
तन्हा सी
गुफ़्तगू करती रही

अपने खून में
लगी आग को बुझाना
मुझे कहां आता था
निहारती रही
आसमां की तरफ़
कि शायद कोई अब्र
मुझ पर रहम खायेगा
मेरी आग को बुझा जाएगा

मगर
सहरा से तन्हा लम्हों में
मैं
मेरी रात
वो चिंगारी बनी बात
बेबस दिए की

लौ की मानिंद
हर करवट
अधूरी तिश्नगी लिए
बस जलते रहे
पिघलते रहे

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 651

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on December 13, 2016 at 5:11pm

आदरणीय  Mahendra Kumar जी प्रस्तुति को अपनी आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 13, 2016 at 5:11pm

आदरणीय  Tasdiq Ahmed Khan जी प्रस्तुति को अपनी आत्मीय सराहना से शोभित करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Mahendra Kumar on December 12, 2016 at 9:05pm
बहुत बढ़िया कविता है आदरणीय सुशील सरना जी। हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 12, 2016 at 8:48pm

जनाब सुशील सरना साहिब , एक खामोश औरत के जज़्बात की अच्छी मंज़र कशी हुई है रचना में , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --

Comment by Sushil Sarna on December 12, 2016 at 7:32pm

आदरणीय डॉ  गोपाल जी भाई साहिब  प्रस्तुति को अपनी मधुर शब्दों से अलंकृत करने का हार्दिक आभार। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 12, 2016 at 5:53pm

वाह वाह सरना जी , ऐसी तिश्नगी आप में ही हो सकती है , सादर .

Comment by Sushil Sarna on December 12, 2016 at 1:39pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'  जी प्रस्तुति के भावों को स्वीकृति देती आपकी आत्मीय प्रशंसा से रचना उपकृत हुई। .....आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on December 12, 2016 at 1:35pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति के भावों की अपने शीरीं लफ़्ज़ों से ताजपोशी करने का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by नाथ सोनांचली on December 12, 2016 at 11:02am
आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन, बहुत बढ़िया, भावपूर्ण और एक अतुकांत रचना की पृष्ठभूमि में प्रतिबिम्ब खिचती खुबसूरत रचना पर मेरी अन्तश ह्रदय से बधाई आपको, सादर
Comment by Samar kabeer on December 12, 2016 at 10:49am
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा कविता लिखी,एक बाहया औरत के जज़्बात की बहुत बढ़िया तर्जुमानी की है आपने,इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से देरों बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
1 hour ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service