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“भैय्या, जल्दी बस रोकना!!” अचानक पीछे से किसी महिला की तेज आवाज आई|

सभी सवारी मुड़ कर  उस स्त्री को घूरती हुई नजरों से देखने लगी शाम होने को थी सभी को घर पँहुचने की जल्दी थी|

महिला के बुर्के  में शाल में लिपटी एक नन्ही सी बच्ची थी जो सो रही थी |ड्राइवर ने धीरे धीरे बस को एक साइड में रोक दिया| पीछे से वो महिला आगे आई और तुरत फुरत में बच्ची को ड्राईवर की गोद में डाल कर सडक के दूसरी और झाड़ियों में विलुप्त हो गई|

 ड्राईवर हतप्रभ रह गया कभी बच्ची को कभी सवारियों को देख रहा था  जो अब उसकी स्थिति पर हँस रही थी|

रही सही कसर बच्ची ने उसको गीला करके पूरी करदी वो चिल्लाया तो लोग और हँसने   लगे|

थोड़ी देर में महिला बस में आई और बच्ची को ले कर  ड्राइवर को धन्यवाद देने लगी |

“एक बात बता इस पूरी बस में केवल मैं ही मिला था जो तू इस बच्ची को मेरी गोद में डाल गई क्यों? देख इसने मुझे गीला भी कर दिया नाक भौं सिकोड़ते हुए ड्राइवर ने पूछा”

 

“इस बस में मैं किसी को नहीं जानती थी”

“मुझे जानती है?”

“हाँ.. तू इस रोडवेज की बस का ड्राइवर है और देवी माँ का भक्त भी है चलने से पहले तूने देवी माँ के सामने अगरबत्ती भी जलाई थी अल्लाह  का ऐसा नेक बन्दा  किसी औरत  को कभी दुःख नहीं पँहुचा सकता बस इतनी जान पहचान से मैंने सिर्फ तुझ पर भरोसा किया और अपनी बच्ची  को तुझे सौंप गई|  मेरी इस  ‘खुशबू’  ने जो तुझे गीला किया वो अच्छा शगुन है देवी माँ तेरे घर भी जल्दी अवतार लेंगी देख लेना”

सुनते ही  ड्राईवर के थके हुए चेहरे पर एक  चमक व् मुस्कराहट  सी उभर आई अपनी गर्भवती पत्नी  के बारे में सोचता हुआ मुस्कुराते हुए बस स्टार्ट करने लगा उसकी आने वाली ‘खुशबू’ ने उसके कपड़ों के गीलेपन और बदबू के अहसास को  ढक दिया था |    

 --------मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on January 20, 2017 at 6:13am
वाह ! एक कहानी ऐसी भी। बहुत अच्छी। बधाई , आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी जी , सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 19, 2017 at 9:23pm
आज के दौर में 'विश्वास' को तार्किक रूप से बढ़िया परिभाषित करती दिलचस्प प्रवाहमय व प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा। कुछ महिलाएँ वास्तव में ऐसी ही चतुर होती हैं। विषम परिस्थितियों में रास्ता सूझ जाता है उन्हें बिना घबराये संयमित रहकर! शीर्षक को व समापन पंचपंक्तियों को सार्थक करती बढ़िया रचना में /झाड़ियों में विलुप्त हो गई/जैसी पंक्तियों में बहुत कुछ कहते हुए 'वाचाल' महिला पात्र की 'प्रत्युत्पन्नमति' व बस-चालक की दो तरह की अनुभूतियों का चित्रण व प्रस्तुति वास्तव में बेहतरीन है। हालाँकि वर्तमान दौर में आडम्बर औपचारिकता वाले धार्मिक क्रियाकलाप से प्रभावित होकर धोखा खाने की संभावनाएँ भी रहती हैं। बस-चालक से कोई लापरवाही भी हो सकती थी चौंकने के कारण। लेकिन जो संदेश सम्प्रेषित हुआ है वह आज के वातावरण में सकारात्मक व विचारोत्तेजक है। पुनः बहुत बहुत बधाई!
Comment by Nita Kasar on January 19, 2017 at 7:33pm
बड़ी ही प्यारी मासूम सी कथा है,जिस तरह एक लड़की के लिये माँ बनने का अहसास सुखद होता है उसी तरह एक पुरूष के लिये पिता बनने का अहसास होता है ।बधाई आद० राजेश कुमारी जी ।
Comment by Mohammed Arif on January 19, 2017 at 6:06pm
आदरणीया राजेश कुमारीजी, विश्वावास की सरज़मी को पुख़्ता करती लघुकथा के लिए बधाई ।
Comment by नाथ सोनांचली on January 19, 2017 at 3:53pm
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन, आपकी गहरी सोच का कोई जबाब नही, क्या उम्दा कथानक लिए आपने लघुकथा लिखा है, निःसंदेह जहाँ एक ओर यह पाठ भी पढ़ा रही है वहीँ मानवीय रिस्ते को पहचानने का तरीका भी, आपको दिल खोल कर बधाई प्रेषित करता हूँ, इस उम्दा लघुकथा पर
Comment by Samar kabeer on January 19, 2017 at 2:26pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by विनय कुमार on January 19, 2017 at 1:14pm

अहा, मन एकदम खुश हो गया पढ़कर, बहुत प्यारी मानवीय संवेदनाओं को दर्शाती खूबसूरत रचना, बहुत बहुत बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 1:06pm
आदरणीया राजेश दीदी, मानवीय संवेदनाओं में गहराते आपसी अविश्वास की खाई को पाटती सोच को शाब्दिक करती लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है। सादर

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