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ग़ज़ल क्या गिला है रुक्मिणी से

2122 2122
तुम मिली थी सादगी से ।
याद है चेहरा तभी से ।।

जिक्र आया फिर उसी का ।
जब गया उसकी गली से ।।

बादलों का यूं घुमड़ना ।
है जमीं की तिश्नगी से ।।

यूं मुकद्दर आजमाइश ।
कर गई फ़ितरत ख़ुशी से ।।

गीत भंवरा गुनगुनाया ।
आ गई खुशबू कली से ।।

मैकशों का क्या भरोसा ।
वास्ता बस मैकशी से ।।

सिर्फ राधा ढ़ूढ़ते हो ।
क्या गिला है रुक्मिणी से ।।

जोड़ता है रोज मकसद ।
आदमी को आदमी से ।।

ख्वाब यूं टूटे न मेरा ।
डर गया हूँ रोशनी से ।।

वह हवा की बेरुखी थी ।
क्यों शिकायत ओढ़नी से ।।

चुन लिया उल्फ़त को मैंने ।
इक तुम्हारी पेशगी से ।।

लौट आया है तबस्सुम ।
फिर तेरी दरिया दिली से ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
अप्रकाशित मौलिक

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Comment by Naveen Mani Tripathi on February 5, 2017 at 9:50am
आदरणीय जयनित कुमार मेहता साहब सादर आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 5, 2017 at 9:49am
आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर सादर आभार के साथ नमन ।
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 4, 2017 at 11:41pm
आदरणीय नवीन जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने।

जोड़ता है रोज मकसद ।
आदमी को आदमी से ।।...सच्चा शेर!

लौट आया है तबस्सुम ।
फिर तेरी दरिया दिली से ।।...क्या बात है!बहुत खूब।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2017 at 11:24pm

ग़ज़ब के भावोद्गार हैं आदरणीय नवीन जी ! हृदयतल से बधाइयाँ ! 

इन दो शेरों के माध्य्म से आपने तो कमाल ही कर दिया है, भाई -

ख्वाब यूं टूटे न मेरा ।
डर गया हूँ रोशनी से ।।

वह हवा की बेरुखी थी ।
क्यों शिकायत ओढ़नी से ।।

दाद दाद ! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 3, 2017 at 8:13pm

आदरनीय नवीन भाई बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 1, 2017 at 10:24pm
आ0 कबीर सर सादर नमन । अभी सुधार करता हूँ
Comment by Samar kabeer on February 1, 2017 at 9:12pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

दूसरे शैर में शुतरगुर्बा दोष है,ऊला मिसरे में 'तुम्हारा'और सानी मिसरे में ',तेरी' ।

तीसरे शैर में क़ाफ़िया दोष है,"ज़मीं"शब्द में अनुस्वार है ।
छटे शैर के ऊला में 'मैकसों'को "मैकशों" और सानी में 'मैकसी'को "मैकशी" कर लें ।
आख़री शैर में 'तबस्सुम'पुल्लिंग है, इसलिये "लोट आया"कहना होगा ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 1, 2017 at 8:59pm
वाह आदरणीय बहुत ही शानदार
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 1, 2017 at 3:42pm
आ नरेंद्र सिंह चौहान साहब शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 1, 2017 at 3:41pm
आ0 गुरु प्रीत साहब तहेदिल से शुक्रिया ।

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