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बिना तुम्हारे, हे मेरी तुम, सब आधा है (नवगीत)

बिना तुम्हारे

हे मेरी तुम

सब आधा है

 

सूरज आधा, चाँद अधूरा

आधे हैं ग्रह सारे

दिन हैं आधे, रातें आधी

आधे हैं सब तारे

 

जीवन आधा

दुनिया आधी

रब आधा है

 

आधा नगर, डगर है आधी

आधे हैं घर, आँगन

कलम अधूरी, आधा काग़ज़

आधा मेरा तन-मन

 

भाव अधूरे

कविता का

मतलब आधा है

 

फागुन आधा, मधुऋतु आधी

आया आधा सावन

आधी साँसें, आधा है दिल

आधी है घर धड़कन

 

सबकुछ आधा

पर मेरा दुख

कब आधा है?

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 10, 2017 at 2:33pm

आदरणीय सौरभ जी, रचना को मान देने के लिये तह-द-दिल से आपका शुक्रगुज़ार हूँ। आप सच कह रहे हैं रचना की पहली पंक्ति ‘हे मेरी तुम’ केदारनाथ अग्रवाल जी के ‘हे मेरी तुम’ से ही प्रेरित है। इसीलिये ये पंक्ति आदरणीय समर साहब को अधूरी सी लग रही है मगर ‘हे मेरी तुम’ पंक्ति केदारनाथ अग्रवाल जी की अनुभव एवं अनुभूति गाथा है। स्नेह यथावत बना रहे।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 10, 2017 at 2:28pm

आदरणीय आशुतोष मिश्र जी, मोहम्मद आरिफ़ साहब, आशीष यादव जी, समर कबीर साहब, जयनित जी, बृजेश जी एवं पंकज जी। रचना को अपना समय देने और उत्साहवर्द्धन करने के लिये हृदयतल से आप सबका  आभारी हूँ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 12, 2017 at 8:16pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, आपके नवगीत का आधार-स्तम्भ नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर एवं वरेण्य साहित्यकार डॉ. केदार नाथ अग्रवाल का भाव-निवेदन ’हे मेरी तुम’ को देख-जान कर हृदय भाव-विह्वल हो गया है. 

पद्य-साहित्य में सर्वहारा आंदोलन के अग्रगण्य पुरोधा केदारनाथ अग्रवाल गीति-प्रतीति उद्बोधनों में आमजन की कोमल अनुभूतियों को रेखांकित करने के विद्यालय रहे हैं. इन संदर्भों मे यह साझा करना रोचक ही होगा, कि वरिष्ठ जनगीतकार नचिकेता जी केदारनाथ को नवगीत विधा का प्रथम पुरुष मानते हैं. यहीं यह भी साझा करना रोचक होगा, कि हिन्दी पद्य साहित्य में स्वकीया के प्रति भाव-निवेदनो का ऐसा आनुभूतिक ज्वार केदारनाथ के पूर्व देखने को नहीं मिलता. आमजन की दांपत्य-अनुभूतियों के नितांत आत्मीय क्षणों को शाब्दिक करती हुई नवगीतात्मकता अपनी पूरी सामर्थ्य के साथ केदारनाथ के गीतों में सप्रवेग प्रस्तुत हुई है.

आपका इस पृष्ठभूमि से रू-ब-रू होना और भावमय शाब्दिकता के साथ रचना-प्रक्रिया के प्रति उद्यत हो जाना आपकी पाठकीय संवेदना का मुखर परिचायक है. और, सर्वोपरि, आश्वस्ति है कि आपने अपने प्रयास में पूरी पवित्रता बरती है. आपकी प्रस्तुति इस तथ्य का सुन्दर उदाहरण है, कि प्रणय के अपेक्षा-प्रवाह का प्रभाव वस्तुतः कितना प्रेरक हुआ करता है ! वियोग के उत्कट क्षणों में कटा-कटा-सा जीवन जीता हुआ एक आमजन प्रतीत होती समस्त प्रकृति के अधूरेपन को तिल-तिल जीता है. उसे घूँट-घूँट पीता है. और, अधूरेपन की ऐसी निरुपायता में भी उसके दुःख का पूर्णत्व कैसा अपरिहार्य हुआ करता है ! इस कचोट को रेखांकित करती है आपकी प्रस्तुति की अंतिम पंक्ति - सबकुछ आधा / पर मेरा दुख / कब आधा है?

आदरणीय, इस उच्च कोटि की प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बधाइयाँ और अशेष शुभकामनाएँ 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 12, 2017 at 11:03am
बहुत बढ़िया रचना हुई है, आदरणीय बाऊजी का सुझाव भी काबिलेगौर है
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 12, 2017 at 9:34am
वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर रचना हुई..सादर
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 9, 2017 at 9:40pm
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, इस रचना को पढ़ते समय हर "वाह" के पहले एक आह निकलती रही। इस अति सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको।
Comment by Samar kabeer on February 9, 2017 at 8:43pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा गीत लिखा है आपने,अंतिम पंक्तियां ख़ूब हुईं'सब कुछ आधा पर मेरा दुःख क़ब आधा है, बहुत ख़ूब वाह, इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
इब्तिदा में ये पंक्ति 'हे मेरी तुम' में कुछ अधूरापन लग रहा है ।
Comment by आशीष यादव on February 9, 2017 at 7:15pm
Bahut Sundar creation.
Comment by Mohammed Arif on February 9, 2017 at 5:50pm
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी आदाब,बेहतरीन गीत की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें । रब भला कैसे आधा हो सकता है । परम सत्ता तो पूर्ण है ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 9, 2017 at 5:24pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी आनंद आ गया इस रचना को पढ़कर इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

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