For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की-रोज़ जो मुझ को नया चाहती है

२१२२/११२२/२२ (११२)

रोज़ जो मुझ को नया चाहती है
ज़िन्दगी मुझ से तू क्या चाहती है?
.
मौत की शक्ल पहन कर शायद
ज़िन्दगी बदली क़बा चाहती है.
.
मशवरे यूँ मुझे देती है अना
जैसे सचमुच में भला चाहती है.
.
इक  सितमगर जो  मसीहा भी न हो,
नई दुनिया वो  ख़ुदा चाहती है.
.
“नूर’ बुझ जाये चिराग़ों की तरह
क्या ही नादान हवा चाहती है. 
.
निलेश"नूर"

मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1144

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2017 at 7:01pm

शुक्रिया आ. डॉ. आशुतोष जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 4, 2017 at 6:58pm
बहुत खूब ग़ज़ल हुई आदरणीय..अग्रजों की टिप्पड़ी से काफी कुछ सीखने को मिला..मशविरे को लेकर मैं भी असमंजस में हूँ गुणीजन बात साफ करें तो आसानी होगी..अगर मशविरा से आसय सलाह है तो सलाह आपस में की भी जाती है दूसरों को दी भी जाती है..सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 3, 2017 at 5:56pm

आदरणीय नूर जी आपकी इस ग़ज़ल के माध्यम से विद्वतजनो की प्रतिक्रियाओं से तमाम जानकारी मिली . 

मशवरे यूँ मुझे देती है अना 
जैसे सचमुच में भला चाहती है इस शेर के लिए बिशेष रूप से बधाई सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 3, 2017 at 3:40pm

जी आ. तस्दीक़ साहब... मैं ग़लत समझ बैठा 
सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 3, 2017 at 2:37pm
मुहतरम नीलेश साहिब,ख़ल्क़ कामतलाब

मुहतरम नीलेश साहिब,ख़ल्क़ का मतलब "दुनिया के लोग " होता है ,परलोक नहीं ?
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 3, 2017 at 11:19am
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 3, 2017 at 11:17am
Comment by Ravi Shukla on May 3, 2017 at 10:56am

आदरणीय नीलेश जी अच्‍छी ग़ज़ल के लिये दिली मुबारक बाद पेश है

मशवरे यूँ मुझे देती है अना
जैसे सचमुच में भला चाहती है.
  ये शेर बहुत पंसद आया बधाई

हमने भी एक शेर में मश्‍वरा देना का इस्‍तेमाल किया था तो एक इस्‍लाह मिली   और कहा कि मश्‍वार आपस मे किया जाता है दिया नहीं जाता । इस मंच पर विद्वतजन की टिप्‍पणी क्‍या आती है । ये प्रतीक्षा है । सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 2, 2017 at 10:06pm

शुक्रिया आ. तस्दीक़ साहब ....खल्क पहुँचू तो वहाँ की बात करूँ.... अभी दुनिया में हूँ तो यहाँ कि नुमाइन्दगी करना बेहतर होगा ...
...
5 वें शेर के सानी मिसरा अपने आप में पूरा है .... क्लासिकल शाइरी पढेंगे तो ऐसा ही लिखा पायेंगे ...
यह   ही में वो  तंज़ कहाँ जो क्या ही में है ..
सादर 

Comment by Samar kabeer on May 2, 2017 at 9:37pm
'यह ही नादान हवा चाहती है'

भाई तस्दीक़ जी आपके सुझाये मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर नज़र नहीं आया आपको ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service