For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोई रिश्ता निभाया जा रहा है

मापनी -१२२२ १२२२ १२२

कोई रिश्ता निभाया जा रहा है

मुझे फिर से बुलाया जा रहा है

 

भले ही खिड़कियाँ हैं बंद घर की,

मगर परदा उठाया जा रहा है

 

पड़ीं हैं नींव में चुपचाप ईंटे,

भले बोझा बढाया जा रहा है

 

अभी कुछ शांत हैं लहरें वहाँ पर,

उन्हें पत्थर दिखाया जा रहा है

 

नहीं है पास उनके एक छत भी,

महल का गीत गाया जा रहा है

 

बिठाना था जिन्हें पलकों पे’ हर पल,

उन्हें घर से भगाया जा रहा है

 

जरा सा हाथ सूरज का हटा क्या,

कि मुझसे दूर साया जा रहा है

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on May 9, 2017 at 5:48pm
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 9, 2017 at 4:26pm

आदरणीय बसंत शर्मा जी अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2017 at 4:22pm

जरा सा हाथ सूरज का हटा क्या,
कि मुझसे दूर साया जा रहा है

वाह बहुत सुंदर आदरणीय बसंत जी ... इस बेहतरीन अहसासों वाली ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 9, 2017 at 3:36pm

आदरणीय Ravi Shukla जी हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 9, 2017 at 3:35pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, आपने मेरी गजल को समय दिया और त्रुटि की ओर ध्यानाकर्षित किया, बहुत बहुत धन्यवाद आपका, यह टंकन त्रुटि ही है सादर , सुधर कर देता हूँ. 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 9, 2017 at 3:34pm

आदरणीय  Mohammed Arif  जी हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comment by Ravi Shukla on May 9, 2017 at 3:27pm

आदरणीय बसंत जी बढि़या गजल कही आपने मुबारक बाद कुबूल करें अरकान आदरणीय योगराज भाई जी ने बताए है वही है टंकण त्रुटि हो तो सुधार लीजिये । सादर


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 9, 2017 at 2:34pm

ग़ज़ल के अरकान दोबारा जांच लें आ० बसंत कुमार शर्मा जी, १२२२ १२२२ १२ की बजाय १२२२ १२२२ १२२ है शायद. 

Comment by Mohammed Arif on May 9, 2017 at 1:39pm
आदरणीय बसंत शर्मा जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ क़ुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service