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ग़ज़ल - क्यों भला दंड वत हुआ जाये ( गिरिराज भंडारी )

2122   1212   22/112

अब यहाँ पर विगत हुआ जाये

या, जहाँ से विरत हुआ जाये

 

खूब दीवार बन जिये यारो

चन्द लम्हे तो छत हुआ जाये

 

कोई खोले तो बस खला पाये

प्याज़ की सी परत हुआ जाये

 

ताब रख कर भी सर उठाने की

क्यों भला दंड वत हुआ जाये

 

आग, पानी , हवा की ले फित्रत 

हैं जहाँ, जाँ सिफत हुआ जाये

 

खूबी ए  आइना बचाने को 

क्यूँ न पत्थर फ़कत हुआ जाये

******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 8, 2017 at 1:04pm
बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई आदरणीय

कोई खोले तो बस खला पाये
प्याज़ की सी परत हुआ जाये..बहुत ही शानदार
Comment by Ravi Shukla on August 8, 2017 at 8:07am

आदरणीय गिरिराज भाईजी अच्छी ग़ज़ल कही आपने मुबारक बाद पेश है । एक शंका हमें भी है छत स्त्रीलिंग है ऐसे में वाक्य देखे तो छत छुई जाए या छत को छुआ जाए होना चाहिए । अगर ये सही है तो मिसरा काम नहीं करेगा । बताइयेगा  ।सादर

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 7, 2017 at 8:28pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल नये प्रयोग, अच्छा लगा , ज्ञान भी प्राप्त हुआ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 7, 2017 at 6:36pm

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया । आदरनीय मै केवल उन चीज़ों को स्वीकार कर लेने के पक्ष मे हूँ , जिन शब्दों के दोनो रूप स्वीकार किये गये हैं । लेकिन मंच अगर एक नियम बना दे तो मेरी कोई ज़िद नही है , कुछ लोग उदाहरण दे दे कर किसी भी बात को सही कहें और मंच चुप रहे तो यही होगा न ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 7, 2017 at 6:32pm

आदरणीय आरिफ भाई , सराहना के ल्लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 7, 2017 at 6:32pm

आदरणीय सतविन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 7, 2017 at 6:31pm

आदरणीय समर भाई , सही कहा आपने , अनुस्वार हटाना ज़रूरी है , मै आवश्यक सुधार कर लूंगा , आभार आपका।

Comment by नाथ सोनांचली on August 7, 2017 at 8:00am
आद0 समर साहब को भी नमन,इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए
Comment by नाथ सोनांचली on August 7, 2017 at 7:59am
आद0 गिरिराज भाई जी सादर अभिवादन, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, और इस। पर समर साहब की टिप्पणी का भी कायल हूँ मैं, हम सहित्यनुरागिओ को शब्द लेकर ही चलना चाहिए न् कि पूर्व में किसी के लिखे को नजीर मान् कर, ऐसा मेरा मानना है, । इस उम्दा ग़ज़ल पर मेरी बधाई कबूल करें। सादर
Comment by Mohammed Arif on August 6, 2017 at 11:12pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम जनाब समर कबीर साहब की बितों से पूरी तरह से सहमत हूँ ।

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