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सुंदर से बाग़ के एक कोने में एक अधकटा पेड़ लोगों को आकर्षित तो कर रहा था पर उसकी बदसूरती पर लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे |

और क्यों न हो चर्चा उसकी , एक बड़ा सा पेड़ जिसकी छाँव में कभी लोग बैठा करते थे आज उसकी ऐसी हालत ! एक तरफ से लग रहा थे मानो किसीने उसकी टहनियों को तोड़ कर उसकी खूबसूरती को उससे छीन लिया था |" पर ऐसा कोई क्यों करेगा ?" एक राहगीर ने दूसरे से पूछा |
" मुझे लगता है यह काम माली का ही होगा | बड़ा पागल होगा यह माली , पेड़ की कटाई करनी हो तो ढंग से तो करता |" मुँह बिचकाते हुए दूसरे ने उत्तर दिया |
पेड़ बेचारा लाचार सा सबकी बातों को सुन रहा था , आज उसको एहसास हो रहा था कि कैसे एक समय पर उसको खुद पर घमंड होता था जब उसकी छाँव में पल रहे छोटे पौधे मुरझा कर बिखर जाते थे और वह हवा से बातें करता हुआ उनपर हँसता रहता था | आज उसके सामने छोटे पौधे हंस रहे थे और वह अध्कटा सा एक ओर खडा था | 
हवा भी थी, बातें भी थी बस नहीं थी तो पेड़ की सब शाखें , जो थोड़ी बहुत थी वो भी मानो हंस रही थी उसपर , और तेज़ रफ़्तार से चल रही हवा में खुद को उस पेड़ से अलग होने के लिए प्रयासरत थी |
लोगों का आना जाना बरकरार था , पर आज इस पेड़ के नीचें छाँव नहीं थी | असहाय सा पेड़ आखिर क्या करे ?

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Afroz 'sahr' on September 18, 2017 at 4:12pm
आदरणीया कल्पना जी अति सुंदर लघू कथा कही आपने आपकी लघू कथा अपने उद्देश्य में सफल है !ह्रदय तल से बधाई स्वीकर करें !सादर
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 18, 2017 at 3:43pm

 आ0. कल्पना जी,खूबसूरत लघु कथा के लिए बधाई,

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 5:56pm

धन्यवाद आदरणीय सलीम रज़ा जी |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 5:55pm

आदरणीय सिज्जू भाई आप भी कह सकते हो जो आपको लगा इस कथा में :) आपका दिल से धन्यवाद |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 17, 2017 at 5:54pm

धन्यवाद आदरणीय नीता दी |

Comment by SALIM RAZA REWA on September 16, 2017 at 7:10pm
आ. कल्पना जी,
सीख देती हुई खूबसूरत लघु कथा के लिए बधाई,

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2017 at 6:04pm

लघुकथा के शिल्प के बारे में तो गुणीजन कहेंगे, आप मेरी तरफ से बधाई स्वीकार करें

Comment by Nita Kasar on September 16, 2017 at 3:10pm
पीड़ा पेड की ।घमंड का घड़ा ख़ाली ही हो जाता है ।बाकी आद० समर कबीर जी कह चुके है बधाई आद० कल्पना बहना ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 14, 2017 at 10:52pm

जी भाई जी आप सही कह रहे हैं | सादर |

Comment by Samar kabeer on September 14, 2017 at 7:38pm
बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कुछ बातों की तरफ़ ध्यान दिलाना चाहूँगा,एक तो ये कि कहीं आपने अधकटा पेड़ लिखा है,और कहीं ठूंठ,//नहीं थीं तो पेड़ की सब शाख़ें,जो थोड़ी बहुत थीं//जब कोई बड़ा पेड़ आधा काटा जाता है तो उसकी जितनी शाख़ें होती हैं वो भी उसके कटे हुए हिस्से में होती हैं,इन बिंदुओं पर थोड़ा ध्यान देने की आवश्यकता है ।

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