सुंदर से बाग़ के एक कोने में एक अधकटा पेड़ लोगों को आकर्षित तो कर रहा था पर उसकी बदसूरती पर लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे |
और क्यों न हो चर्चा उसकी , एक बड़ा सा पेड़ जिसकी छाँव में कभी लोग बैठा करते थे आज उसकी ऐसी हालत ! एक तरफ से लग रहा थे मानो किसीने उसकी टहनियों को तोड़ कर उसकी खूबसूरती को उससे छीन लिया था |" पर ऐसा कोई क्यों करेगा ?" एक राहगीर ने दूसरे से पूछा |
" मुझे लगता है यह काम माली का ही होगा | बड़ा पागल होगा यह माली , पेड़ की कटाई करनी हो तो ढंग से तो करता |" मुँह बिचकाते हुए दूसरे ने उत्तर दिया |
पेड़ बेचारा लाचार सा सबकी बातों को सुन रहा था , आज उसको एहसास हो रहा था कि कैसे एक समय पर उसको खुद पर घमंड होता था जब उसकी छाँव में पल रहे छोटे पौधे मुरझा कर बिखर जाते थे और वह हवा से बातें करता हुआ उनपर हँसता रहता था | आज उसके सामने छोटे पौधे हंस रहे थे और वह अध्कटा सा एक ओर खडा था |
हवा भी थी, बातें भी थी बस नहीं थी तो पेड़ की सब शाखें , जो थोड़ी बहुत थी वो भी मानो हंस रही थी उसपर , और तेज़ रफ़्तार से चल रही हवा में खुद को उस पेड़ से अलग होने के लिए प्रयासरत थी |
लोगों का आना जाना बरकरार था , पर आज इस पेड़ के नीचें छाँव नहीं थी | असहाय सा पेड़ आखिर क्या करे ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0. कल्पना जी,खूबसूरत लघु कथा के लिए बधाई,
धन्यवाद आदरणीय सलीम रज़ा जी |
आदरणीय सिज्जू भाई आप भी कह सकते हो जो आपको लगा इस कथा में :) आपका दिल से धन्यवाद |
धन्यवाद आदरणीय नीता दी |
लघुकथा के शिल्प के बारे में तो गुणीजन कहेंगे, आप मेरी तरफ से बधाई स्वीकार करें
जी भाई जी आप सही कह रहे हैं | सादर |
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