२२/२२/२२/२२/
कर्म अगर साधारण होगा
कैसे नर...नारायण होगा.
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सच्चाई की राह चुनी है
पग पग दोषारोपण होगा.
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जिस के भीतर विष का घट है
उस पर छद्म-आवरण होगा.
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कठिनाई भी बहुत ढीठ है
इस से जीवन भर रण होगा.
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बस्ती बाद में सुलगाएँगे
पहले प्रेम पे भाषण होगा.
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मन में दृढ़ विश्वास न हो फिर
कैसे कष्ट निवारण होगा.
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दसों दिशाओं में शासन है
शासक .. शायद रावण होगा.
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उजड़ेगा वो नगर एक दिन
जिस का भेदी विभीषण होगा.
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आज भाग्य रूठा है तुझ से
इस का भी कुछ कारण होगा.
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चुप बैठेगा एकलव्य तो
उस का प्रतिपल शोषण होगा.
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मानव मरता है, मरने दो
अब केवल गौ-रक्षण होगा.
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“नूर’ पड़ेंगे तुझ पर पत्थर
जैसे ही तू दर्पण होगा.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया आ. दिनेश भाई
शुक्रिया आ. अफ़रोज़ साहब
वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह निलेश भैया ये ग़ज़ल अपने आप में अनूठी है काफिया शुद्ध हिंदी का इसको अतिविशिष्ट बना रहा है \
सभी शेर उम्दा हुए भैया किन्तु इस मिसरे में मुझे संशय है --उस पर छद्म-आवरण होगा.--आवरण २१२ ---इस बह्र में कैसे आयेगा
आज भाग्य रूठा है तुझ से --भाग्य अगर /अभी रूठा है तुझसे --कर लें --या --किस्मत जो रूठी है तुझसे
कठिनाई भी बहुत ढीठ है --कठिनाई भी ढीठ बहुत है
बाकी सभी अशआर उम्दा हुए --मकते के लिए तो विशेष दाद
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मानव मरता है, मरने दो
अब केवल गौ-रक्षण होगा । सच कहा आपने ।
शायद कोई हजम कर पाए या नहीं । देखना होगा
बहुत ही बेहतरीन प्रयोग । नये-नये प्रयोग होते रहना चाहिए । यह सब ओबीओ मंच का कमाल है । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
नोट:- कितना अच्छा हो यदि आप जैसे सिद्धहस्त, निष्णात ग़ज़लगो साहित्य की अन्य विधाओं पर अपनी सृजनशीलता का परिचय देने वालों को भी अपनी अमूल्य टिप्पणियों से पोषित करें ताकि उनका उत्साह बरक़रार रहें ।
वाह वाह आदरणीय निलेश भाई जी वर्तमान के पटल पर अंकित तकरीबन हर बात का जिक्र करती शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर
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