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ग़ज़ल- हिंदी तुकांत के साथ एक प्रयोग (..अण ,, क़ाफ़िये पर संभवत: पहली ग़ज़ल है इस मंच पर)

२२/२२/२२/२२/

कर्म अगर साधारण होगा
कैसे नर...नारायण होगा.
.
सच्चाई की राह चुनी है
पग पग दोषारोपण होगा.
.
जिस के भीतर विष का घट है  
उस पर छद्म-आवरण होगा.
.
कठिनाई भी बहुत ढीठ है  
इस से जीवन भर रण होगा.
.
बस्ती बाद में सुलगाएँगे  
पहले प्रेम पे भाषण होगा.   
.
मन में दृढ़ विश्वास न हो फिर  
कैसे कष्ट निवारण होगा.
.
दसों दिशाओं में शासन है
शासक .. शायद रावण होगा.
.
उजड़ेगा वो नगर एक दिन
जिस का भेदी विभीषण होगा.  
.
आज भाग्य रूठा है तुझ से
इस का भी कुछ कारण होगा.
.
चुप बैठेगा एकलव्य तो  
उस का प्रतिपल शोषण होगा.  
.
मानव मरता है, मरने दो
अब केवल गौ-रक्षण होगा.
.
“नूर’ पड़ेंगे तुझ पर पत्थर
जैसे ही  तू दर्पण होगा.

.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 2458

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 11, 2017 at 8:09pm

शुक्रिया आ. दिनेश भाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 11, 2017 at 8:08pm

शुक्रिया आ. अफ़रोज़ साहब 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 11, 2017 at 6:59pm
आ. नीलेश जी,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.
Comment by Samar kabeer on October 11, 2017 at 6:47pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
बहना की शंका का समाधान करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 11, 2017 at 5:25pm

वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह निलेश भैया ये ग़ज़ल अपने आप में अनूठी है काफिया शुद्ध हिंदी का इसको अतिविशिष्ट बना रहा है \

सभी शेर उम्दा हुए भैया किन्तु इस मिसरे में मुझे संशय है --उस पर छद्म-आवरण होगा.--आवरण २१२ ---इस बह्र में कैसे आयेगा 

आज भाग्य रूठा है तुझ से --भाग्य अगर /अभी रूठा है तुझसे --कर  लें --या --किस्मत जो रूठी है तुझसे  

कठिनाई भी बहुत ढीठ है  --कठिनाई भी ढीठ बहुत है  

बाकी सभी अशआर उम्दा हुए --मकते के लिए तो विशेष दाद 

Comment by Mohammed Arif on October 11, 2017 at 5:24pm

मानव मरता है, मरने दो
अब केवल गौ-रक्षण होगा । सच कहा आपने । 

शायद कोई हजम कर पाए या नहीं । देखना होगा


बहुत ही बेहतरीन प्रयोग । नये-नये प्रयोग होते रहना चाहिए । यह सब ओबीओ मंच का कमाल है । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
नोट:- कितना अच्छा हो यदि आप जैसे सिद्धहस्त, निष्णात ग़ज़लगो साहित्य की अन्य विधाओं पर अपनी सृजनशीलता का परिचय देने वालों को भी अपनी अमूल्य टिप्पणियों से पोषित करें ताकि उनका उत्साह बरक़रार रहें ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 11, 2017 at 4:35pm

वाह वाह आदरणीय निलेश भाई जी वर्तमान के पटल पर अंकित तकरीबन हर बात का जिक्र करती शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by दिनेश कुमार on October 11, 2017 at 4:21pm
बहुत उम्दा, हिन्दी क़ाफ़ियों की ग़ज़ल। क्या कहने हैं आपके आ. निलेश सर जी। सभी शेर बहुत बढ़िया लगे। मतला ता मक़्ता वाह वाह वाह। गौ रक्षण। कमाल सर। वाह वाह वाह
Comment by Afroz 'sahr' on October 11, 2017 at 4:07pm
अरे वाह वाहहहहहहह आदरणीय निलेश जी बहुत ख़ूब हर इक शेर लाजवाब मुबाक बाद आपको ।

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