For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस बहस ही वश में (लघुकथा)

"शुक्र है कि हमारा हाल पड़ोसी मुल्क जैसा नहीं है! हमारा लोकतंत्र जवां है, सदाबहार है!"
"हां, परिपक्व हो रहा है!"
"आप दोनों ग़लत कह रहे हैं! 70 साल से ऊपर का हो गया है अपना लोकतंत्र; तज़ुर्बेदार तो है, लेकिन अब सठिया गया है!"
"लोकतंत्र नहीं, लोग सठिया गए हैं । ख़ुदगर्ज़ी, होड़बाज़ी, अंधी नकल, अंधानुकरण और जुगाड़बाज़ी ने बंटाधार कर दिया है, बुद्धियों का, इस पीढ़ी का!"
"हां, सच कह रहे हो! इसी चक्कर में बच्चे कम उम्र में बड़े और युवा बूढ़े हो रहे हैं!"
"... और बूढ़े उपेक्षित, तिरस्कृत, अपमानित हो रहे हैं!"
"तो फिर अपना मुल्क किस के भरोसे है? क्या होगा इस लोकतंत्र का?"
"ये लोकतंत्र तो अब गया काम से! अब रामराज्य आयेगा! बहुत हो गई धर्म-निरपेक्षता, अब हिन्दुत्व होगा और यह हिन्दू राष्ट्र, समझे!"
"ओके! अब यह भी तो बता दो कि यह नई पीढ़ी तय करेगी या देश के कट्टर प्रौढ़ और बूढ़े? लोकतंत्र के रोड़े! देश का भविष्य किस पीढ़ी के हाथ में है?"
यह सुनकर बहस में शामिल सभी लोग एक-दूसरे के मुंह ताकने लगे। हर चेहरे पर दो चेहरे नज़र आ रहे थे। सामने टेलीविजन पर भी इसी विषय पर तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों, प्रवक्ताओं और कार्यक्रम संचालक के बीच वाद-विवाद चल रहा था, बस!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 645

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 29, 2017 at 10:57pm
रचना पर समय देकर अपने विचारों से अवगत कराने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 29, 2017 at 1:33pm
हमारी मूर्खताओं को उजगर करती बेहतरीन लघुकथा । हार्दिक बधाई ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 27, 2017 at 8:28pm
मेरी इस रचना/लघुकथा के अनुमोदन के साथ अपने विचार/राय साझा करते हुए मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब लक्ष्मण रामानुज लडीवाला साहिब और जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब। जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आपने लघुकथा के मर्म को बहुत बढ़िया शाब्दिक किया है। हार्दिक बधाई और आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on November 27, 2017 at 6:33pm
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बढ़िया विषय चुना आपने, आज यही हो रहा है। आपको इस बेहतरीन लघुकथा पर हार्दिक बधाई निवेदित है। सादर
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 27, 2017 at 4:16pm

बस बहस ही बहस | नतीजा सिफर | सुंदर लघुकथा | वाह !

Comment by Samar kabeer on November 27, 2017 at 3:03pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहतरीन लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on November 26, 2017 at 6:25pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
प्रजातंत्र को केंद्र में रखकर लिखी गई सशक्त लघुकथा । आज का भारतीय प्रजातंत्र का नेतृत्व छद्म रूपऔ से देश के उद्योगपति कर रहे हैं । हर फैसलें उनके मुताबिक हो रहे हैं । वे ही असली नीति निर्माता हैं । नेतागण उनके हाथों की कठपुतलियाँ है । नेताओं का काम रह गया है सिर्फ तीखी बयानबाज़ी करना और बयानबाज़ी से मुकरना । वे दोगले और सर्प की ज़ुबान वाले हो गए हैं । दुष्टों का कोई भरोसा कैसे करें ? बड़ा विचारणीय प्रश्न हैक्ष। दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service