गीत
धरती अम्बर पर्वत नदियाँ,सबके ताने सुनने हैं
हमने जितने कंटक बोये, इस जीवन में चुनने हैं
सर्दी गर्मी की मार सही
या बिन मौसम बरसात सही
चंदा तारों से जगमग हों
या काली नीरव रात सही
हमको तो अभिलाषाओं के,ताने बाने बुनने हैं
हमने जितने कंटक बोये,इस जीवन में चुनने हैं
इक मजहब की दीवार मिले
या वर्ण वर्ग की रार मिले
तेरे मेरे की खाई हो
या द्वेष जलन का हार मिले
हमको तो रिश्तों के मानक ,खामोशी से गुनने हैं
हमने जितने कंटक बोये,इस जीवन में चुनने हैं
पाप औ पुण्य के तीर चलें
या आतंकी शमशीर चलें
झूठे वादे झूठे नेता
या पोंगा पंडित पीर चलें
हमको तो सच की थापी से,छल के गठ्ठर धुनने हैं
हमने जितने कंटक बोये,इस जीवन में चुनने हैं
हम मंजिल से अनजान सही
मुश्किल में अपनी जान सही
ऊँची उफनाती लहरे हों
भीतर भीतर तूफ़ान सही
हमको तो सागर के उर से ,सच्चे मोती चुनने हैं
हमको तो अभिलाषाओं के,ताने बाने बुनने हैं
--------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मोहतरम जनाब तस्दीक जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया .
आद० अजय तिवारी जी ,आपका बहुत बहुत आभार .
आद० सुरेन्द्रनाथ भैया ,आपको गीत पसंद आया बहुत बहुत शुक्रिया मेरा लिखना सार्थक हुआ
आद० समर भाई जी आदाब ,गीत पर आपकी दाद मिली तथा कुछ सुझाव भी जिनका दिल से स्वागत है मूल पोस्ट में सुधार कर चुकी हूँ
आपका बहुत बहुत शुक्रिया .सदैव आपका इसी तरह मार्ग दर्शन मिलता रहे .
आद० उस्मानी जी ,आपको गीत पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ
मुहतर्मा राजेश कुमारी साहिबा , सुन्दर गीत हुआ है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
इस खूबसूरत गीत-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाईयाँ.
सादर
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