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इश्क़ करने की चलो आज सजा हो जाए (ग़ज़ल 'राज')

2122  1122  1122  22

इससे पहले कि नई और ख़ता हो जाए 
इश्क़ करने की चलो आज सजा हो जाए 


बेवफाई का तो दस्तूर निभाया तुमने  
अब कोई रस्म जुदाई की अदा हो जाए 

 

लो झुका दी है जबीं आप निकालो अरमां  
आज पूरी ये चलो दिल की रज़ा हो जाए

 

कू ब कू हो कोई चर्चा यहाँ अपना वल्लाह

शह्र में फिर कोई बदनाम वफ़ा हो जाए

 

जाते जाते मेरे दीयों को बुझाते  जाना

साथ जिनके मेरा हर ख़्वाब फ़ना हो जाए 

 ---मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 12, 2017 at 6:28pm

मुहतर्मा राजेश कुमारी साहिबा ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमाएं।  मतले के उला मिसरे में नई की जगह कोई और सानी मिसरा यूँ करके देख सकते हैं ---इश्क़ करने के इवज़ हमको सज़ा हो जाये ।

Comment by Afroz 'sahr' on December 12, 2017 at 6:11pm
आदरणीय राजेश कुमारी साहिबा ख़ूबसूरत ग़ज़ल है शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद पेश कता हूँ।,,,

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 12, 2017 at 5:46pm

आद० मोहम्मद आरिफ जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 12, 2017 at 5:45pm

आद० गुरप्रीत सिंह जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 12, 2017 at 5:44pm

आद० समर भाई जी आदाब  ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Mohammed Arif on December 12, 2017 at 4:13pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी आदाब,

                         बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र माकूल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on December 12, 2017 at 4:13pm

आदरणीया राजेश जी नमस्कार ... बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने ... बधाई स्वीकार करेँ 

Comment by Samar kabeer on December 12, 2017 at 3:48pm

बहना राजेश कुमारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 12, 2017 at 1:01pm

आद० अजय तिवारी जी ग़ज़ल पर शिरकत दाद और सुझावों का दिल से स्वागत है .बहुत बहुत शुक्रिया आपका .

Comment by Ajay Tiwari on December 12, 2017 at 12:30pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी,

खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाईयाँ.

'इससे पहले कि नई और ख़ता हो जाए' की  जगह 'इससे पहले कि कोई और ख़ता हो जाए' भी एक विकल्प हो सकता है.

तीसरे शेर के ऊला में 'आप निकालो' की जगह 'आप निकालें' बेहतर होगा. सानी को भी 'आप' के अनुरूप करना बेहतर रहेगा.

 

'जाते जाते मेरे दीयों को बुझाते  जाना' की  जगह 'जाते जाते मेरे दीये भी बुझाते  जाना' भी एक विकल्प हो सकता है.

सादर

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