2122 1122 1122 22
इससे पहले कि नई और ख़ता हो जाए
इश्क़ करने की चलो आज सजा हो जाए
बेवफाई का तो दस्तूर निभाया तुमने
अब कोई रस्म जुदाई की अदा हो जाए
लो झुका दी है जबीं आप निकालो अरमां
आज पूरी ये चलो दिल की रज़ा हो जाए
कू ब कू हो कोई चर्चा यहाँ अपना वल्लाह
शह्र में फिर कोई बदनाम वफ़ा हो जाए
जाते जाते मेरे दीयों को बुझाते जाना
साथ जिनके मेरा हर ख़्वाब फ़ना हो जाए
---मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मुहतर्मा राजेश कुमारी साहिबा ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमाएं। मतले के उला मिसरे में नई की जगह कोई और सानी मिसरा यूँ करके देख सकते हैं ---इश्क़ करने के इवज़ हमको सज़ा हो जाये ।
आद० मोहम्मद आरिफ जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .
आद० गुरप्रीत सिंह जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया |
आद० समर भाई जी आदाब ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया राजेश कुमारी जी आदाब,
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र माकूल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
आदरणीया राजेश जी नमस्कार ... बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने ... बधाई स्वीकार करेँ
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आद० अजय तिवारी जी ग़ज़ल पर शिरकत दाद और सुझावों का दिल से स्वागत है .बहुत बहुत शुक्रिया आपका .
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाईयाँ.
'इससे पहले कि नई और ख़ता हो जाए' की जगह 'इससे पहले कि कोई और ख़ता हो जाए' भी एक विकल्प हो सकता है.
तीसरे शेर के ऊला में 'आप निकालो' की जगह 'आप निकालें' बेहतर होगा. सानी को भी 'आप' के अनुरूप करना बेहतर रहेगा.
'जाते जाते मेरे दीयों को बुझाते जाना' की जगह 'जाते जाते मेरे दीये भी बुझाते जाना' भी एक विकल्प हो सकता है.
सादर
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