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मोम नहीं जो दिल पत्थर है
उसका चर्चा क्यों घर-घर है?
मंजिल को पा लेता है वो
जिसने साधी खूब डगर है
लोग पुराने बात पुरानी
फिर भी उनका आज असर है
देख! सँभलना उसने सीखा
जिसने भी खायी ठोकर है
होठों पर मुस्कान भले हो
दिल में गम का इक सागर है
माना सच होता है कड़वा
'राणा' कहता ख़ूब मगर है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. सतविन्द्र जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
जनाब सतविंद्र कुमार साहिब ,सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।
वाह खूब राणा साहब..बहुत बढ़िया
आदरणीय सतविंद्र कुमार जी आदाब, बहुत उम्दा ग़ज़ल , बधाई स्वीकार करें |
आद0 सतविंदर जी सादर अभिवादन। बेहतरीन बह्र मीर पर आप ने ग़ज़ल कहींकही। बहुत खूब।शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल करें। सादर
आदरणीय सतविंद्र कुमार जी आदाब,
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
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