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मोम नहीं जो दिल पत्थर है-ग़ज़ल

22 22 22 22

मोम नहीं जो दिल पत्थर है
उसका चर्चा क्यों घर-घर है?

मंजिल को पा लेता है वो
जिसने साधी खूब डगर है

लोग पुराने बात पुरानी
फिर भी उनका आज असर है

देख! सँभलना उसने सीखा
जिसने भी खायी ठोकर है

होठों पर मुस्कान भले हो
दिल में गम का इक सागर है

माना सच होता है कड़वा
'राणा' कहता ख़ूब मगर है

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 18, 2017 at 10:49pm
आदरणीय सुरेन्द्र भाई जी,हौंसलाफ़ज़ाई के लिए बहुत-बहुत हार्दिक आभार
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 18, 2017 at 10:47pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी सादर नमन,प्रयास के अनुमोदन और हौंसलाफ़ज़ाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया
Comment by Mahendra Kumar on December 18, 2017 at 10:01pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. सतविन्द्र जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 18, 2017 at 3:40pm

जनाब सतविंद्र कुमार साहिब ,सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by Samar kabeer on December 18, 2017 at 2:19pm

जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on December 17, 2017 at 6:54pm
Waaaaaaaah shaaaaàndar ahsaas sir haardik badhaaèeeeeeeeeee
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 17, 2017 at 6:43pm

वाह खूब राणा साहब..बहुत बढ़िया

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 17, 2017 at 5:47pm

आदरणीय सतविंद्र कुमार जी आदाब, बहुत उम्दा ग़ज़ल , बधाई स्वीकार करें |

Comment by नाथ सोनांचली on December 17, 2017 at 5:00pm

आद0 सतविंदर जी सादर अभिवादन। बेहतरीन बह्र मीर पर आप ने ग़ज़ल कहींकही। बहुत खूब।शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल करें। सादर

Comment by Mohammed Arif on December 17, 2017 at 7:48am

आदरणीय सतविंद्र कुमार जी आदाब,

                               शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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