अरकान-: 2122 1212 22
ख़ुद से ये शर्मसार सा क्यों है
आदमी बेक़रार सा क्यों है
मेरे दिल ने सवाल ये पूछा,
नेता हर इक गंवार सा क्यों है
आने वाले नहीं हैं अच्छे दिन,
फिर हमें इन्तिज़ार सा क्यों है
मैंने कुछ भी नहीं छुपाया फिर
तुझमें ये इंतिशार सा क्यों है
मैंने जब माँग ली मुआफ़ी,फिर
उनके दिल में ग़ुबार सा क्यों है
उसकी फ़ितरत से ख़ूब वाक़िफ़ हैं,
'फिर हमें एतिबार सा क्यों है'
उम्र भर मौज की बहुत हमने,
पर बुढ़ापा ये भार सा क्यों है
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बहुतखूब ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय..शानदार
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आद0 अजय तिवारी जी सादर अभिवादन। आपकी इतनी बेहतरीन उत्साह बढ़ाती प्रतिक्रिया से दिल बाग बाग हो गया। बुढ़ापे के जिस शैर की बात की, वह औरों को देखकर उभरा है। मैं तो अभी जवान हूँ या अपने को जवान समझता हूँ। आपका हृदय तल से आभार
आद0 रामअवध विश्वकर्मा जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पसन्द आयी,लिखना सार्थक हुआ। बहुत बहुत आभार
आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पसन्द आयी, लिखना सार्थक हुआ। आपका बहुत बहुत आभार
आद0 नादिर खान जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी गहराई से उपस्थिति और सुखनवाजी का बहुत बहुत आभार।
आदरणीय सुरेन्द्र जी, उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.
'मेरे दिल ने सवाल ये पूछा,
नेता हर इक गंवार सा क्यों है' क्या मासूम सवाल है :))) इस मासूमियत के सदके!
'पर बुढ़ापा ये भार सा क्यों है' ये मिसरा पढ़ के ऐसा लग रहा है जैसे आपकी उम्र उलटी तरफ चल रही है :)))
सादर
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है ।बधाई
आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब,
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र माकूल व प्रासंगिक भी । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
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