22 22 22 22
उनसे मेरी बात हुई है
प्रतिबंधित मुलाक़ात हुई है
सारे स्वप्न तरल हैं मेरे
देखो तो बरसात हुई है
स्याही बन कर भस्म्है बिखरी
यूँ न अधेरी रात हुई है
मन खुद में ही खोज खुदी से
शांति कहाँ, आयात हुई है
दिल वो जीते दर्द मग़र हम
मत समझो बस मात हुई है
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अफरोज जी आपका सुझाव उचित है लेकिन मुझे लगता है कि मैंने शब्दों को उनके लिंग के अनुरूप ही स्थान दिया है
आदरणीय सुरेंद्र सर आपके सुझाव पर विचार अवश्य होगा
आदरणीय आरिफ सर बहुत-बहुत आभार
आदरणीय मनोज भाई, शुक्रिया; अंतिम शेर में मैंने कहना चाहा है कि
जिसको दिल की हिफाजत सौंपा गया है वह अपने आप में खुद ही एक आघात है
बाकी, हो सकता है कहन कमज़ोर हो।
आद0 पंकज जी सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने। एक बात कहना चाहूंगा,वैसे ग़ज़ल में मात्रा पतन का लाभ लिया जाता है, पर अगर इस बह्र में न लिया जाए तो लय और बढ़िया रहती है। सादर
आपको शैर दर शैर मुबारकबाद पेश करता हूँ।
आदरणीय पंकज मिश्रा जी आदाब,
बहुत ही बेहतरीन हिंदी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजनों का इंतज़ार करें ।
अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई जी
अंतिम शेर को देख ले
सादर
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