“नेता जी ,अब तो मेरे बारे में कुछ सोचिये। कितना काम किया चुनाव में दिन-रात जागा। विपक्षी नेता के विरुद्ध धरना दिया ।झंडा ,पोस्टर ,बैनर सब ले घुमा ।अब आप जीत गए तो हमारा भी नोकरी का जुगाड़ कर दीजिये।”
कार्यकर्त्ता कई दिन चक्कर लगाने के बाद आज बोल ही पड़ा ।पंचायत चुनाव के बाद नेता जी उसकी बात ही न सुन रहे थे ।
नेता जी ....” हाँ हाँ ठीक है ।देखते हैं ..पहले विधानसभा चुनाव होने दो । बहुत बिजी है अभी ।”
नेता जी कुछ रुके ।आँखों को मीचते हुए बोले --
“अच्छा कुछ काम करो ।खाना ,भत्ता दे देंगे ।”
“क्या काम ? नेता जी ! बताइये .......।” कार्यकर्ता फिर से जाल में फँस रहा था ।
“राजेश्वर जी के लिए प्रचार करना है ।”
टाँगे फैलाते हुए नेता जी ने एक वाक्य उछाला ।
कार्यकर्त्ता भौचका था ।उसके गले में जैसे शब्द अटक गए थे ।गले से शब्दों को खींच कर बोला --
…”.ये कैसे हो सकता है ?वो तो आपके शत्रु थे। उनकी पार्टी के विरुद्ध तो आप पंचायत चुनाव लड़े थे ।हम उनकी पार्टी को बहुत गालियां दिए थे ।अब उनका प्रचार ?”
नेता जी ने मिची हुई आँखों को खोला ।आँखों से छलकती राजनीति शब्द बनकर बरसी:
“अरे बेवकूफ ! गधे रहोगे ! राजनीती में कोई स्थायी शत्रु नहीं होता समझे …। सत्ता के लिए कभी गालियों की रस्सी कसी जाती है तो कभी उसी रस्सी में गठबंधन की गाँठे भी लगानी पड़ती हैं ।”
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया संगीता जी, कथा के मध्यम से एक सार्थक राजनैतिक व्यंग के लिए हार्दिक बधाई. सादर.
वर्तमान राजनीति का यथार्थ. अच्छी लघुकथा कही है आपने आ. संगीता जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
बड़े ही बेहतरीन तरीके से अपने सत्य का यथार्थ चित्रण किया है आदरणीया..सादर
बहुत सही , सार्थक। यह अलग बात है कि कौटिल्य का यह अभिप्राय नहीं रहा होगा । बधाई, सुश्री आदरणीय संगीता जी , सादर।
हार्दिक धन्यवाद मोहम्मद आरिफ जी ।हाँ एक स्थान पर अनुस्वार नहीं है और नोकर में मात्रा की गलती है ।गूगल हिंदी इनपुट कुछ मात्राएँ नहीं होती ।फिर भी मैं सुधार का प्रयास करूँगी ।कोई और गलती हो तो इंगित कीजियेगा ।आभार ।
आदरणीया संगीता गांधी जी आदाब,
राजनीति में कोई ईमान-धरम नहीं होता । वह सबकुछ करवाने की क्षमता रखती है । बहुत ही सशक्त लघुकथा । वर्तनीगत ढेरों अशुद्धियाँ है, देखिएगा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक धन्यवाद नीता जी ।
हकीकत की सुंदर बानगी बधाई सुंदर कथा के लिये आद० संगीता गांधी जी ।
मोहतरमा संगीता गाँधी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।कि
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online