For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल : कभी पगडंडियों से राजपथ के प्रश्न मत पूछो // -सौरभ

1222 1222 1222 1222

 
अभी इग्नोर कर दो, पर, ज़बानी याद आयेगी
अकेले में तुम्हें मेरी कहानी याद आयेगी
 
चढ़ा फागुन, खिली कलियाँ, नज़ारों का गुलाबीपन
कभी तो यार को ये बाग़बानी याद आयेगी
 
मसें फूटी अभी हैं, शोखियाँ, ज़ुल्फ़ें, निखरता रंग
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी
 
मुबाइल नेट दफ़्तर के परे भी है कोई दुनिया
ठहर कर सोचिए, वो ज़िंदग़ानी याद आयेगी
 
कभी पगडंडियों से राजपथ के प्रश्न मत पूछो
सियासत की उसे हर बदग़ुमानी याद आयेगी
 
मुकाबिल हो अगर दुश्मन निहायत काँइयाँ फिर तो
बरत तुर्की-ब-तुर्की ताकि नानी याद आयेगी
 
बहुत संतोष औ’ आराम से है ज़िन्दग़ी कच की
मगर कैसे कहे, कब देवयानी याद आयेगी ?
 
सदा रौशन रहे पापा.. चिराग़ों की तरह ’सौरभ’
मगर माँ से सुनो तो धूपदानी याद आयेगी
****
सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1284

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on March 2, 2018 at 2:44pm

उर्दू में "ज़बानी" का अर्थ होता है 'कंठस्थ होना' और जो चीज़(याद) कंठस्थ है तो 'याद आयेगी' कैसे कह सकते हैं,इसलिये ये शंका पैदा हुई मुहतरम ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2018 at 2:08pm

आदरणीय समर साहब, आपकी टिप्पणी में ही आपके प्रश्न का उत्तर भी निहित है. बस ठहर कर देखना भर है. भाई साहब,

मिसरा तस्दीक कर रहा है भविष्य की होनी का, जिसमें किसी कार्य की पूर्णता पर कोई संदेह नहीं प्रतीत होता. अर्थात, जिसे आप भूतकाल का विन्यास मात्र मान कर इसकीव्यवस्था पर संदेह कर रहे हैं, उसे हिंदी व्याकरण में संदिग्ध भूतकाल की श्रेणी का वाक्य-विन्यास माना जाता है. इसी क्रम में आगे स्पष्ट कर दूँ कि उक्त मिसरे से कार्य की पूर्णता पर अवश्यंभावी होने का भाव ज़ाहिर होता है. यानी, ज़बानी या ज़ुबानी याद आना इस नज़रिये से प्रयुक्त हुआ है. 

विश्वास है, आप हिंदी भाषा की इस विशिष्टता को समर्थन देंगे.  आपके प्रश्न से कई पाठकों के संदेहों को समुचित समाधान मिल जायेगा. 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2018 at 1:55pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी नेकनिग़ाही बनी रहे. होली की शुभकामनाएँ 

शुभातिशुभ

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 2, 2018 at 12:29pm

मुहतरम जनाब सौरभ साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। ज़बानी का एक ऑप्शन निशानी हो सकता है ।

Comment by Samar kabeer on March 1, 2018 at 11:32pm

जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,क्या ग़ज़ल कही है,वाह एक एक शैर अपना अलग ही रंग दिखा रहा है,लेकिन मतले के दोनों मिसरों के रब्त और ख़ास तौर पर ऊला मिसरे के क़ाफिये 'ज़बानी' को लेकर मेरे मन में उसी वक़्त से दुविधा है जब ये ग़ज़ल मैंने आपकी ज़बान से सुनी है ।

'पर,ज़बानी याद आयेगी' इसमें 'ज़बानी' के साथ 'याद आयेगी' कुछ अजीब सा लग रहा है,क्योंकि 'ज़बानी याद कर ली है' 'ज़बानी याद है मुझको''ज़बानी याद कर लूंगा की हद तक तो 'ज़बानी'के साथ आगे के जुमले का व्याकरण बिल्कुल दुरुस्त है, लेकिन 'ज़बानी याद आयेगी' गले से उतरने को तैयार नहीं है,व्याकरण की दृष्टि से 'ज़बानी याद आयेगी ' की तरकीब मेरे नज़दीक सही नहीं है,आप इस पर कुछ रौशनी डालें और मेरी शंका का समाधान करने का कष्ट करें ।

इसके अलावा ग़ज़ल का हर शैर अपनी मिसाल आप है, मेरी तरफ़ से इस ग़ज़ल की प्रस्तुति पर दिल खोलकर मुबारकबाद पेश करता हूँ,और बाक़ी पहले ही दाद दे चुका हूँ ।

Comment by Samar kabeer on March 1, 2018 at 11:15pm

आजकल यहाँ टिप्पणियाँ fb. की तरह की जा रही हैं मुहतरम कौन लगाम कसे,मेरे बस की बात नहीं ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 10:08pm

लाजवाब गजल हुई है, आ. भाई सौरभ जी । कोटि कोटि बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2018 at 6:21pm

वाह्ह्ह बहुत दिनों बाद आपकी कोई ग़ज़ल पढ़ रही हूँ आद० सौरभ जी बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है 

चढ़ा फागुन, खिली कलियाँ, नज़ारों का गुलाबीपन 
कभी तो यार को ये बाग़बानी याद आयेगी ------बहुत सुन्दर शेर 
कभी पगडंडियों से राजपथ के प्रश्न मत पूछो 

 सियासत की उसे हर बदग़ुमानी याद आयेगी -----बहुत सही बात कही 

शेर दर शेर मुबारकबाद स्वीकारें 
 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 1, 2018 at 3:20pm

आदरणीय आरिफ़ साहब, आपने प्रस्तुत हुई रचना के लिए समय निकाला और उत्साहवर्द्धन किया, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद. 

Comment by Mohammed Arif on March 1, 2018 at 3:08pm

आदरणीय सौरभ पांडे जी आदाब,

                    बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल का मुजाहिरा । उम्दा अश'आरों से सुसज्जित ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दादक्षके साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service