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खन खन करता कंगन है
साँसों में भी कम्पन है
मैं पत्थर हूँ राहों का
तू खुश्बू है चन्दन है
आहट है किन कदमों की
उर में कैसा स्पंदन है
आँखों ने क्या कह डाला
आकुल ये मन वंदन है
मन मन्दिर में आ जाओ
स्वागत है अभिनन्दन है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी स्वागत संग आभार..
बहुत बहुत आभार आदरणीय तिवारी जी
तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय आरिफ जी..
आदरणीय नीलेश जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार..सादर
आ. भाई ब्रजेश जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।
आदरणीय बृजेश जी, एक और अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई.
आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब,
बहुत उम्दा ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
आ.बृजेश कुमार 'ब्रज' जी
अच्छी ग़ज़ल हुई है
बधाई
शुक्रिया आदरणीय समर जी..."अच्छी ग़ज़ल हुई" आपके ये शब्द बहुत मायने रखते हैं..बहुत बहुत शुक्रिया
जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें ।
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