पता नहीं उस मिटटी के बड़े से आले में क्या तलाश रहा था थका मायूस आठ बर्षीय मोहन?कुछ गंदे फटे पुराने कपड़े और नाना की टूटी पनय्यियों के सिवा कुछ भी तो नहीं था उस आले में।अचानक उसके उदास चेहरे पे एक तेज चमक उभरी..कुछ मिला था उसे..लेकिन ये वो चीज नहीं है जिसे वो मासूम तलाश रहा था ।परंतु शायद उससे भी ज्यादा जरुरी था वो धूल मिटटी से सना हुआ रोटी का टुकड़ा।लगता है किसी चूहे ने यहाँ छोड़ा होगा।चोर निगाहों से उसने दांये बांये देखा..नहीं कोई नहीं देख रहा है..अगले ही पल वो रोटी का टुकड़ा उसकी निकर की जेब में था।एक बार फिर चारों तरफ देख तसल्ली की उसने और फिर तेजी से घर के पिछले हिस्से की ओर भागा।एक मुनासिब कोना तलाश कर कुछ पल अपनी साँसों को सयंत किया और फिर मृग शावक सी व्याकुल आँखों से इधर उधर देखा।उसे कोई नहीं देख रहा है मन को तसल्ली हुई।डर इस बात का नहीं था कि कोई रोटी देख लेगा डर था कि कोई उसकी भूख पहचान न ले जो वो छुपा रहा था।जेब से रोटी का टुकड़ा निकाल उसके ऊपर जमी धूल मिटटी को हाथों से पोंछ बड़े चाव से खाता चला गया..पता नहीं फिर कब मिले?पिछले एक पुरे दिन से कुछ भी तो नहीं था घर में खाने को।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
आदरणीय डा.साहब..हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ..मुझे भी लगता कुछ और बेहतर किया जा सकता है...निरंतर प्रयासरत हूँ..
उचित ही फ़रमाया आपने आदरणीय सोमेश जी..आपको रचना पसंद आई आपका हार्दिक अभिनन्दन..
भाई ब्रिजेश जी रचना के भाव बहुत अच्छे लगे ..मैं जिस बात पर उलझा था उस का संकेत आदरनीय शेख जी ने अपनी टिप्पणी में बखूबी क्र दिया है रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें
lghuktha ki sbse bdi chunoti yhi hoti hai ki use gagar me sagar bhrna hota hai.km shbdon me gambhir ghav krne hote hai mujhe lgta hai islie lghuktha ka stik mulaynkn kthin hota hai.JO bhi ho aapki lghuktha achchi lgi
जी आदरणीय शेख साहब..दरअसल मुझे लगता ही लघु कथा पाठक से बात करती हुई होनी चाहिए..कोई भी लघुकथा अपने अंत में पाठक के दिलो दिमाग में एक टीस सी छोड़ती हो तो वो सफल है।जितना लगता है लघु कथा लिखना उतना आसान नहीं है।बड़ी हिम्मत कर के ये मेरा पहला प्रयास है।आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
आदरणीय समर जी हौसलाफजाई के लिए आपका तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ।
भूख और भूखे पेट के हालात पर बढ़िया रचना। इसे दो तीन तरह से लिख कर देखिएगा, तो बेहतर रूप भी आप दे सकेंगे। हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी।
जनाब बृजेश जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय महाजन जी..बस भूख से जूझते हुए एक मासूम बचपन की मनोदशा का वर्णन करने की कोशिश की..
वाह आ0 ब्रजेश कुमार जी बहुत खूब । अच्छी लघु कथा । कथाओं का इतना जानकार तो नहीं हूँ लेकिन एक श्रोता के जानिब हर बेहतरीन कहानी का कोई उद्देश्य व संदेश ज़रूर होता है ।
सादर !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online