कविता ....
कविता !
तुम न होती
तो प्रेम कभी
प्रस्फुटित ही न होता
शब्द गूंगे हो गए होते
भाव
शून्य हो
व्योम में खो गए होते
तुम ही बताओ
हृदय व्यथा के बंधन
कौन खोलता
दृग की भाषा को
कौन स्वर देता
लोचन
शृंगारहीन रह गए होते
आधरतृषा
अनुत्तरित रह गयी होती
एकाकी पलों में
अभिलाषाओं की गागर
रिक्त ही रह जाती
प्रेम सुधा
एक सुधि बन जाती
हर श्वास
एक सदी सी बन जाती
सच !
कविता
तुम सृष्टि की
वो अद्भुत देन हो
जो जीवन को श्वास देती है
जीने का विशवास देती है
कभी श्रृंगार तो कभी
अंगार से
जीवन रंग देती हो
कविता !
तुम हो तो
भाव देह में प्राण हैं
अन्यथा
जीवन
एक अनंत विश्राम का
अदृश्य विराम है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नरेन्द्रसिंह चौहान जी सृजन को आत्मीय मान देना का दिल से आभार। ... नेट प्रॉब्लम से आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीय बृजेश कुमार जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। आदरणीय विजय निकोर साहिब, सादर प्रणाम। ... आपकी स्नेहाशीष का ये बंदा दिल से आभार है। नेट प्रॉब्लम से आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार। आदरणीय विजय निकोर साहिब, सादर प्रणाम। ... आपकी स्नेहाशीष का ये बंदा दिल से आभार है। नेट प्रॉब्लम से आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब सृजन के भावों को अपनी दिलकश शैली में उत्साहित करने का दिल से आभार । आपका तहे दिल से शुक्रिया। नेट प्रॉब्लम से आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी सृजन आपकी आत्मीय वाह का दिल से आभारी है। नेट प्रॉब्लम से आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीय मो.आरिफ साहिब आदाब , सृजन को आत्मीय मान से सुशोभित करने का दिल से आभार। नेट प्रॉब्लम से आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
वाह बहुत ही सुन्दर कविता हुई आदरणीय...
आ. भाई सुशील जी, कविता दिवस पर सुंदर कविता हुई है । हार्दिक बधाई ।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,कविता दिवस पर बहुत उम्दा और सार्थक कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
khub sundar rachna
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