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आदरणीय गणेश जी, नमस्कार । प्रशासन तंत्र पर कटाक्ष करती बहुत ही बढ़िया कविता । हार्दिक बधाई।
प्रशासनिक व्यवस्था में राजनितिक हस्तक्षेप कैसे एवं किस हद तक हावी है इसकी बानगी आपकी कविता करा गई सादर बधाई आदरणीय
आदरणीय गणेश जी,
व्यवस्था किस तरह से मध्यमवर्ग को भी उत्पीड़ित करती है इसे आपकी कविता संवेदनशील तरीके से पेश करती है.
हार्दिक बधाई.
जनाब गणेश जी "बाग़ी" साहिब आदाब, लाजवाब कविता,वाक़ई इंजीनियर्स का भी हक़ तो है कि उनपर साहित्यकार क़लम उठाये,आप तो साहित्यकार भी हैं और इंजीनियर भी,क्या कविता लिख दी आपने इसकी तारीफ़ के लिए
शब्द नहीं मेरे पास,ढेरों मुबारकबाद आपको इस बहतरीन सृजन के लिए ।
'चश्मदीदों' बहुवचन में मुनासिब शब्द नहीं है,इसके स्थान पर 'देखने वालों' कर लें तो उचित होगा ।
हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी। बहुत सुंदर कटाक्ष करती कविता।
it is representing a real life of an engineer congratulation
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