For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एलियंस /लघुकथा

पहाड़ की चोटी पर बैठा हुआ वह युवक अभी भी एंटीने से जूझ रहा था।

आज से कई साल पहले जब गाँव का सबसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा युवक शहर से पहली बार टीवी लेकर आया था तो सब लोग बेहद ख़ुश थे। नारियल, अगरबत्ती और फूल-माला से स्वागत किया था सबने उसका। मगर जल्द ही, ‘‘ये टीवी ख़राब है क्या? इसमें हमारी ख़बर तो आती ही नहीं।’’ बुज़ुर्ग की बात से उस युवक के साथ-साथ बाकी गाँव वालों का भी माथा ठनका। ‘‘अरे हाँ! इसमें तो सिर्फ़ शहरों की ही ख़बरें आती हैं, गाँव का तो कहीं कोई नाम ही नहीं।’’ सबने तय किया कि शहर से दूसरी टीवी मंगवायी जाये।

शहर से बदलकर दूसरी टीवी लायी गयी, मगर फिर वही हाल। ‘‘शहर में अच्छी चीजें महंगी मिलती हैं। इसलिए हो सकता है कि सस्ती टीवी होने की वजह से यह सभी जगह की ख़बरें न दिखा पा रही हो।’’ उस पढ़े-लिखे युवक की बात में दम था। इसलिए सबके चन्दे से इस बार एक महंगी टीवी मंगवायी गयी।

‘‘पर इसमें तो अब भी हमारी कोई ख़बर नहीं?’’ निराश बुज़ुर्ग ने चश्मे को टीवी के नज़दीक लाते हुए कहा। वह युवक भी हतप्रभ था। शहर में तो वहाँ की सारी ख़बरें आती थीं। फिर यहाँ? ‘‘शायद ये टीवी शहर से आयी है इसीलिए इसमें केवल शहर की ही ख़बरें होती हैं।’’ पढ़ा-लिखा युवक बुद्धिमान भी था। इसलिए अबकी टीवी पास वाले कस्बे से लायी गयी। मगर हालात फिर भी जस के तस।

लोग इतने दिनों से टीवी देख रहे थे लेकिन उन्हें कहीं कोई ग़रीब नज़र नहीं आया। किसान तथा मज़दूर फ़िल्मों, नाटकों और समाचारों से ग़ायब थे। यही हाल मज़लूमों का भी था। टीवी में न तो उन लोगों की कोई आवाज़ थी और न ही कोई अक्स। भूख का तो टीवी के भूगोल में नामो-निशान तक न था। ऐसा नहीं था कि शहर में भी सारा शहर मौजूद रहा हो। जिस तरह से यहाँ गाँव वालों की ख़बरें नहीं आ रही थीं उसी तरह से वहाँ पर मलिन बस्ती वालों की। पर गाँव वालों को अभी भी उम्मीद थी। इसीलिए वे सालों से पहाड़ की चोटी पर टकटकी लगाये बैठे थे।

‘‘ख़बर आयी?’’ पहाड़ के नीचे गाँव वालों के साथ बैठे बुज़ुर्ग ने आशा भरी निगाह से पूछा। मगर पहाड़ की चोटी पर बैठा हुआ गाँव का सबसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा युवक अभी भी टीवी के एंटीने से जूझ रहा था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 511

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on June 8, 2018 at 2:08pm

उत्सावर्धन हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय गंगा धर शर्मा जी. हार्दिक आभार. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on June 8, 2018 at 2:07pm

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. सादर धन्यवाद.

Comment by Mahendra Kumar on June 8, 2018 at 11:04am

एक गंभीर पाठक किसी भी लेखक की पहली पसन्द होता है. इसलिए आपकी टिप्पणी का हमेशा ही इंतज़ार रहता है आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. आप लघुकथाओं को बहुत ध्यान से पढ़ते हैं. आपकी यह टिप्पणी भी यही दर्शाती है. आपका बहुत-बहुत आभार एवं हृदय से धन्यवाद. सादर.

Comment by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on June 7, 2018 at 4:07pm

गज़ब...भाई महेंद्र कुमार जी बहुत हे सशक्त एवं समीचीन लघुकथा...हार्दिक बधाई...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2018 at 11:02am

वर्तमान व्यवस्था पर करारी चोट करती कथा , हार्दिक बधाई आदरणीय

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 6, 2018 at 8:55pm

एक बेहद कड़वी सच्चाई को सस्ते-महंगे, शहर-कस्बे और बुद्धिमान युवक के ऐंटीना (सरकार/मीडिया/बड़े नेता) के.बेहतरीन ताने-बाने और परिकल्पना व प्रतीकात्मकता से सम्प्रेषित करती बेहतरीन लघुकथा और शीर्षक के लिये तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार मुहतरम जनाब महेंद्र कुमार साहिब। सवाल उठाती विचारोत्तेजक रचना

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
2 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service